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Ligures
भDFUUUUUUUUUUUUUUUUU र द्वितीय श्रुतस्कंध : धर्मकथा
( ३५३ ) SI 5 EARLIER INCARNATION OF GODDESS KALI
12. “Bhante! Goddess Kali was very powerful. What deeds did she do in s her earlier birth that she was endowed with so much power. How did she Battain her divine form and power?"
Shraman Bhagavan Mahavir replied
Gautam! During that period of time there was a city named Amalkalpa in Bharatvarsh. Outside the city there was a Chaitya named Amrashalvan. King Jitshatru was the ruler of that city.
सूत्र १३ : तत्थ णं आमलकप्पाए नयरीए काले णामं गाहावई होत्था, अड्डे जाव अपरिभूए। 5 तस्स णं कालस्स गाहावइस्स कालसिरी णामं भारिया होत्था, सुकुमालपाणिपाया जाव सुरूवा। द र तस्स णं कालगस्स गाहावइस्स धूया कालसिरीए भारियाए अत्तया काली णामं दारिया होत्था, डा 5 वड्डा वडकुमारी जुण्णा जुण्णकुमारी पडियपुयत्थणी णिव्विन्नवरा वरपरिवज्जिया वि होत्था। र सूत्र १३ : वहाँ काल नाम का गाथापति (गृहस्थ) रहता था। वह धनाढ्य और सामर्थ्यवान था। र उसकी पत्नी का नाम कालश्री था। वह सुकुमार अंगों वाली थी और मनोहर रूप वाली थी। काल दी 15 गाथापति की पुत्री तथा कालश्री की आत्मजा का नाम काली था। वह बड़ी आयु की हो जाने पर डा र भी अविवाहिता थी। उसका शरीर जीर्ण हो चला था, उसके स्तन लटक गये थे और लोग उसे देख ड र विरक्त हो जाते थे। इस कारण वह अविवाहित ही रह गई थी। , 13. A citizen named Kaal lived there. He was rich and resourceful. The SI 2 name of his wife was Kaalshri. She was delicate and beautiful. The couple
had a daughter named Kali. She was middle aged but still unmarried. Her a 5 body had lost its charm, her breasts drooped, and so she presented a 15 repulsive appearance to spouse-seekers. That was the reason she had become a spinster.
सूत्र १४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं पासे अरहा पुरिसादाणीए आइगरे जहा वद्धमाणसामी, णवरं णवहत्थुस्सेहे सोलसहिं समणसाहस्सीहिं अट्ठत्तीसाए अज्जियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिवुडे SI B जाव अंबसालवणे समोसढे, परिसा णिग्गया जाव पज्जुवासइ। 15 सूत्र १४ : काल के उस भाग में पुरुषादानी धर्म प्रवर्तक अरिहंत पार्श्वनाथ विद्यमान थे। वे डा
र वर्धमान स्वामी के समान गुण वाले थे। अन्तर यह था कि उनका शरीर नौ हाथ ऊँचा था और 15 उनके साथ सोलह हजार साधु तथा अड़तीस हजार साध्वियाँ थीं। वे आम्रशालवन में पधारे। द 15 परिषद् निकली और भगवान की उपासना करने लगी। K 14. During that period of time, the propagator of religion Purushadani
Arhat Parshvanath was living. He was as endowed as Shraman Bhagava
115 SECOND SECTION : DHARMA KATHA
(353) दा Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnns
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