Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 412
________________ उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३९ ) सूत्र २४ : एवामेव समणाउसो ! जाव पव्वइए समाणे पुणरवि माणुस्सए कामभोगे आसाएइ जाव अणुपरियट्टिस्सइ, जहा व से कंडरीए राया । सूत्र २४ : इस प्रकार हे आयुष्मान श्रमणो ! हमारा जो साधु-साध्वी दीक्षित होकर पुनः मनुष्य शरीर सम्बन्धी कामभोगों की इच्छा करता है वह कण्डरीक राजा के समान संसार सागर में पुनः पुनः जन्म-मरण के चक्कर में फँस जाता है।" 24. Long-lived Shramans! In this way those of our ascetics who, after getting initiated, desire for carnal and mundane pleasures once again, are caught in the cycle of rebirth indefinitely like king Kandareek." पुण्डरीक की उग्र साधना सूत्र २५ : तए णं ते पोंडरीए अणगारे जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छत्ता थेरे भगवंते वंदइ, णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतिए दोच्चं पि चाउज्जामं धम्मं पडिवज्जइ, छट्ठखमणपारणगंसि पढमाए पोरिसीए सज्झायं करेइ, करिता जाव अडमाणे सीय-लुक्खं पाण-भोयणं पडिगाइ, पडिगाहित्ता अहापज्जत्तमिति कट्टु पडिणियत्तइ, पडिणियत्तित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता भत्तपाणं पडिदंसेइ, पडिदंसित्ता थेरेहिं भगवंतेहिं अब्भणुन्नाए समाणे अमुच्छिए अगिद्धे अगढिए अणज्झोववण्णे बिलमिव पण्णगभूएणं अप्पाणं तं फासुएसणिज्जं असणं पाणं खाइमं साइमं सरीरकोट्टगंसि पक्खिव । सूत्र २५ : उधर पुण्डरीक अनगार स्थविर भगवंत के पास पहुँचे और उनको यथाविधि वन्दना करके उनके निकट पुनः चातुर्याम धर्म अंगीकार किया। फिर षष्ठ भक्त के पारणे के लिए प्रथम प्रहर में स्वाध्याय किया, दूसरे प्रहर में ध्यान और तीसरे प्रहर में भिक्षाटन करके ठण्डा और रूखा जैसा भी प्राप्त हुआ भोजन - पान ग्रहण किया। फिर यह विचार कर वापस लौटे कि मेरे लिए यही यथेष्ट व पर्याप्त है। लौट कर स्थविर भगवन्त के पास आये, उन्हें लाया हुआ भोजन दिखाया और भोजन करने की आज्ञा प्राप्त की। तत्पश्चात् मूर्च्छा व आसक्ति रहित भाव पूर्वक उस एषणीय आहार को उन्होंने शरीर रूपी कोठे में वैसे ही डाल दिया जैसे सर्प सीधा बिल में प्रवेश कर जाता है । HARSH PRACTICES OF PUNDAREEK 25. In the mean time ascetic Pundareek caught up with the Sthavir ascetic and after due formalities got properly initiated into the ascetic order. On the day of his fast breaking he spent the first quarter of the day in studies, the second quarter in meditation, and during the third quarter he set out to collect alms. He accepted whatever stale or dry food he got. He returned satisfied that this should be all he needed. He went to the Sthavir CHAPTER - 19 : PUNDAREEK Jain Education International For Private Personal Use Only (339) 5 www.jainelibrary.org

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