Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 423
________________ VIV 17 ( ३५०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 सूत्र ७ : काल के उस भाग में राजधानी चमरचंचा में कालावतंसक भवन में काली नाम की दा र देवी काल नाम के सिंहासन पर बैठी थी। चार हजार सामानिक देवियाँ, चार महत्तरिका देवियाँ, डा र सपरिवार तीन परिषद्, सात अनीक, सात अनीकाधिपति, सोलह हज़ार आत्म-रक्षक देव तथा हा 15 अन्यान्य कालावतंसक भवन के निवासी असुरकुमार देवों और देवियों के समूह से घिरी वह उच्च टा ध्वनि वाले वाद्य-यंत्र, नृत्य, गीत आदि द्वारा मनोरंजन करती समय व्यतीत कर रही थी। 15 7. During that period of time a goddess named Kali was sitting on a 15 throne named Kaal in the Kaalavatansak divine vehicle in the capital city dl 15 Chamarchancha. Surrounded by four thousand vehicle-based goddesses, four दा 12 queen-goddesses, three types of assemblies with members, seven armies, SI 2 seven commanders, sixteen thousand guard-gods, and a mass of many other SI Asur-kumar gods and goddesses residing in the Kaalavatansak dimension, she was enjoying divine pleasures including melodious musical instruments, a 15 dances and songs. र सूत्र ८ : इमं च णं केवलकप्पं जम्बुद्दीवं दीवं विउलेणं ओहिणा आभोएमाणी आभोएमाणी डी 15 पासइ। तत्थ णं समणं भगवं महावीरं जम्बुद्दीवे दीवे भारहे वासे रायगिहे नयरे गुणसिलए चेइए टा र अहापडिरूवं उग्गहें उग्गिण्हित्ता संयमेण तवसा अप्पाणं भावमाणे पासइ, पासित्ता डा र हट्टतुट्ठचित्तमाणंदिया पीइमणा हयहियया सीहासणाओ अब्भुढेइ, अब्भुट्टित्ता पायपीढाओ से 15 पच्चोरुहइ, पच्चोरुहिता पाउयाओ ओमुयइ, ओमुइत्ता तित्थगराभिमुही सत्तट्ठ पयाइं अणुगच्छइ, दी र अणुगच्छित्ता वामं जाणुं अंचेइ, अंचित्ता दाहिणं जाणुं धरणियलंसि निहटु तिक्खुत्तो मुद्धाणं 5 धरणियलंसि निवेसेइ, निवेसित्ता ईसिं पच्चुण्णमइ, पच्चुण्णमइत्ता कडय-तुडिय-थंभियाओ है। र भुयाओ साहरइ, साहरित्ता करयल जाव सिरसावत्तं कट्ट एवं वयासी5 सूत्र ८ : काली देवी सम्पूर्ण जम्बूद्वीप को अपने विपुल अवधिज्ञान के उपयोग से देख रही थी। 15 उसने भरत क्षेत्र में राजगृह नगर के गुणशील चैत्य में यथा प्रतिरूप, साधु के लिए उचित स्थान की ई र याचना कर संयम और तप की साधना में लीन श्रमण भगवान महावीर को देखा। उन्हें देखकर वह डी र प्रसन्न और संतुष्ट हुई, उसका चित्त आनन्दमग्न हो गया और मन प्रीति से अभिभूत हो गया। वह ट 15 आत्मविभोर होकर सिंहासन से उठी और पादपीठ से नीचे उतरकर पादुकाएँ उतार दीं। फिर दी र तीर्थंकर भगवान की दिशा में सात-आठ चरण आगे बढ़ी, बायें घुटने को ऊपर रख दाहिने घुटने ! र को धरती पर टेका और मस्तक को कुछ ऊँचा किया। कड़ों और बाजूबंदों से शिथिल भुजाओं को ट 15 मिलाया और यथाविधि हाथ जोड़कर बोलीर 8. With the help of her all enveloping Avadhi Jnana she was observing the whole Jambu continent. She saw Shraman Bhagavan Mahavir begging for an appropriate place and commencing his profound practices of penance and a 5 spiritual discipline in the Gunasheel Chaitya in Rajagriha city in the Bharat 5 (350) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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