Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 416
________________ - תעתעתעתעתעתעתעת חחחחחחחחחחחחחחחחחחח भएण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्म्य उपसंहार 15 ज्ञाता धर्मकथा की यह उन्नीसवीं कथा शैलक राज की कथा के समान है। साधक के सुविधा भोगी होकर साधना पथ से विमुख हो जाने के दुष्परिणाम को स्पष्ट करती है। CONCLUSION 5 This nineteenth story of Jnata Dharma Katha is almost same as the story Pof King Shailak. It explains the bad result of abandoning the spiritual path due to attachment to mundane comforts. | उपनय गाथा वाससहस्सं पि जई, काऊणं संजमं सुविउलं पि। अंते किलिट्ठभावो, न विसुज्झइ कउरीयव्व ॥१॥ अप्पेण वि कालेणं, केइ जहा गहियसीलसामण्णा। साहिति निययकज्ज, पुंडरीयमहारिसि व्व जहा ॥२॥ र कोई हजार वर्ष तक अत्यन्त विपुल-उच्चकोटि के संयम का पालन करे किन्तु अन्त में उसकी 5 15भावना संक्लेशयुक्त-मलीन हो जाए तो वह कंडरीक के समान सिद्धि प्राप्त नहीं कर सकता॥१॥ र इसके विपरीत, कोई शील एवं श्रामण्य-साधुधर्म को अंगीकार करके अल्प काल में भी ड 5महर्षि पुंडरीक के समान अपने प्रयोजन को-शुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति के लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं॥२॥ THE MESSAGE Even after a thousand years of maintaining a high degree of discipline, if 15 feelings or attitudes are tarnished a being can never attain the goal, as c Kandareek did not. (1) B However, someone like ascetic Pundareek reaches the goal of the pure 5 state of liberation in short time by sincerely accepting discipline and a 15 following the ascetic code of conduct. (2) LDCHAPTER-19 : PUNDAREEK (343) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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