Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 404
________________ मज्जाज र उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक ( ३३३ ) डा 5 सूत्र ११ : एक बार स्थविर मुनि पुण्डरीकिणी नगरी के नलिनीवन उद्यान में पधारे। राजा दा र पुण्डरीक धर्म देशना सुनने आये। धर्मोपदेश सुनकर पुण्डरीक राजा कण्डरीक अनगार के पास गये और उन्हें वन्दना नमस्कार द र किया। वहाँ उन्होंने देखा कि कण्डरीक मुनि का शरीर सब प्रकार की बाधाओं से युक्त और ड र रोगाक्रान्त है। यह देख के पुनः स्थविर मुनि के पास गये और उन्हें वन्दना करके कहा “भन्ते ! मैं 5 कण्डरीक मुनि की यथाप्रवृत्त औषध और भेषज से चिकित्सा कराना चाहता हूँ। अतः आप मेरी द २ यानशाला में पधारिये। 5 11. Later, once again the Sthavir ascetic came to Pundarikini town and a 5 stayed in the Nalinivan garden. King Pundareek came to pay homage. After the discourse, King Pundareek visited ascetic Kandareek and paid his homage. When the king observed the dull, anaemic, deteriorated and Bailing body of ascetic Kandareek he went to the Sthavir ascetic and said, "Bhante! I wish to get ascetic Kandareek treated by such a doctor, medicines, and diet that is not prohibited for an ascetic. Bhante! Please come to my 5 coach-house and stay there.” सूत्र १२ : तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयस्स रण्णो एयमट्ठ पडिसुणेति, पडिसुणित्ता जाव 5 उवसंपिज्जत्ता णं विहरंति। तए णं पुंडरीए राया जहा मंडुए सेलगस्स जाव बलियसरीरे जाए। द __ सूत्र १२ : स्थविर भगवन्त ने राजा पुण्डरीक का यह निवेदन स्वीकार कर लिया और उनकी 5 अनुमति लेकर वहाँ रहने लगे। जिस प्रकार मण्डुक राजा ने शैलक मुनि की चिकित्सा करवाई थी टा उसी प्रकार राजा पुण्डरीक ने कण्डरीक मुनि की चिकित्सा करवाई। इससे कण्डरीक अनगार डा र नीरोग होकर बलवान शरीर वाले हो गये। 12. The Sthavir ascetic accepted the request of King Pundareek and shifted as the king desired. As king Manduk had arranged for the treatment of ascetic Shailak, King Pundareek also got ascetic Kandareek treated. The ascetic regained his health and became strong. 5 कण्डरीक मुनि की शिथिलता 5 सूत्र १३ : तए णं थेरा भगवंतो पुंडरीयं रायं पुच्छंति, पुच्छित्ता बहिया जणवयविहारं द र विहरंति। तए णं से कण्डरीए ताओ रोगयंकाओ विप्पमुक्के समाणे तंसि मणुण्णंसि असण-पाण-5 र खाइम-साइमंसि मुच्छिए गिद्धे गढिए अज्झोववन्ने, णो संचाएइ पुंडरीयं आपुच्छित्ता बहिया 15 अब्भुज्जएणं जणवयविहारेणं विहरित्तए। तत्थेव ओसण्णे जाए। र सूत्र १३ : कालान्तर में स्थविर भगवन्त ने पुण्डरीक राजा को सूचना देकर वहाँ से प्रस्थान में 15 किया और जनपदों में विहार करने लगे। 15 CHAPTER-19 : PUNDAREEK (333) टा 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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