Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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। उन्नीसवाँ अध्ययन : पुण्डरीक : आमुख ।
शीर्षक-पुंडरीए-पुंडरीक--नाम विशेष। पुंडरीक राजा तथा उनके भाई कंडरीक की कथा भावना रहित बाह्य साधना की व्यर्थता और भावना सहित साधना के महत्त्व को दर्शाती है। तपस्या कितनी ही लम्बी और कठोर क्यों न हो मन में राग-द्वेष एवं विषयों से विरक्ति न हो तो निष्फल हो जाती है। दूसरी ओर राग-द्वेष वासना से विरक्त मन अन्धकार में भी अपने ध्येय को पा लेता है। ___ कथासार-महाविदेह में पुंडरीकिणी नगरी के राजा पद्मनाभ के दो पुत्र थे। पुंडरीक तथा कंडरीक। राजा जब विरक्त हो दीक्षा लेने लगे तो उन्होंने पुंडरीक को राजा तथा कंडरीक को युवराज बना दिया। कुछ समय बाद स्थविर मुनि के पुंडरीकिणी नगरी में आने पर दोनों भाई उपदेश सुनने गये। राजा पुंडरीक श्रमणोपासक बने और कंडरीक को दीक्षा लेने की इच्छा हुई। राजा से आज्ञा लेने पर उन्होंने कहा कि अभी दीक्षा मत ले मैं तुझे राजा बनाना चाहता हूँ। कंडरीक नहीं माना और दीक्षा ले ली। उग्र विहार भी किया पर शरीर से अस्वस्थ हो गया। जब कंडरीक मुनि पुनः नगर में आए तो राजा ने उन्हें अस्वस्थ देख उपचार की व्यवस्था की। उनके स्वस्थ होने के बाद स्थविर मुनि ने अन्य शिष्यों सहित प्रस्थान किया किन्तु कंडरीक भोजन और सुविधाओं के प्रति आसक्त हो जाने के कारण वहीं रह गए। इस पर राजा पुंडरीक ने उन्हें समझाया और उनके आग्रह पर वह पुनः विहार करने लगे। पर यह विहार सहन न होने से वापस नगर में आ गए। इस बार राजा ने पूछा “क्या तुम्हें सांसारिक भोगों की अभिलाषा है ?" कंडरीक के हाँ कहने पर पुंडरीक उन्हें राज्य सिंहासन पर बैठा स्वयं दीक्षित हो गए। ___ कंडरीक राज्य मिलते ही भोजनादि में लिप्त हो गये और फलस्वरूप बीमार पड़े और कलुषित भावनाओं के कारण मरकर नरक में गये।
पुंडरीक दीक्षा के पश्चात् विहार कर गुरु की खोज में निकले और गुरु के पास पहुँच यथाविधि दीक्षा ली। पारणे में रूखे-सूखे भोजन से वे भी बीमार पड़ गये और अन्त समय निकट जान प्रतिक्रमण व संलेखना कर देह त्याग दी। वे देवलोक में जन्मे। वहाँ से महाविवेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेंगे।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA
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