Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 393
________________ !חחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחחותיה! र ( ३२२) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र Sl 15 तए णं से धण्णे सत्थवाहे सुंसुमाए दारियाए बहूई लोइयाइं जाव विगयसोए जाए यावि ड 2 होत्था। 15 सूत्र ४१ : उस आहार से चलने योग्य होकर वे राजगृह नगर पहुंचे, अपने स्वजनों, मित्रों दी 2 आदि से जाकर मिले, और विपुल धन, सोना आदि तथा धर्म, अर्थ, व पुण्य के भागी बने। 15 धन्य सार्थवाह ने सुंसुमा के सभी लौकिक मृतक-कृत्य यथाविधि सम्पन्न किये और समय बीतने ट र के साथ वह शोक रहित हो गया। 41. When they regained enough energy to move, they returned to 5 Rajagriha, joined their family, relatives, and friends, and heartily enjoyed ट wealth, followed religion, and gained piety. Dhanya merchant performed the last rites of Sumsuma traditionally and S 15 with passage of time emerged from the sorrow. सूत्र ४२ : तेणं कालेणं तेणं समएणं समणे भगवं महावीरे गुणसीलए चेइए समोसढे। से णं द र धण्णे सत्थवाहे संपत्ते, धम्म सोच्चा पव्वइए, एक्कारसंगवी, मासियाए संलेहणाए सोहम्मे ड 5 उववण्णो, महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ। र सूत्र ४२ : काल के उस भाग में श्रमण भगवान महावीर विहार करते हुए राजगृह के गुणशील डा र चैत्य में पधारे। उस समय धन्य सार्थवाह वन्दना करने के लिए उनके पास गया और धर्मोपदेश । 15 सुनकर दीक्षा ग्रहण कर ली। उसने क्रमशः ग्यारह अंगों का अध्ययन कर लिया। अन्तिम समय ट 12 आने पर एक माह की संलेखना कर सौधर्म देवलोक में जन्म लिया। वहाँ से च्यवन कर वह डा र महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेगा और सिद्ध बनेगा। 42. During that period of time Shraman Bhagavan Mahavir arrived in the Gunasheel Chaitya in Rajagriha. Dhanya merchant went to pay homage. After the discourse he got initiated. In due course he studied the eleven canons. When his end was near he took the ultimate vow of one month duration and embraced the meditative death. He reincarnated as god in the Saudharm dimension. From there he will descend in the Mahavideh area and get liberated. 15 उपसंहार सूत्र ४३ : जहा वि य णं जंबू ! धण्णेणं सत्थवाहेणं णो वण्णहेउं वा, णो रूवहेउं वा, नो दा र बल हेडं वा नो विसयहेउं वा, सुंसुमाए दारियाए मंस-सोणिए आहारिए नन्नत्थ एगाए रायगिहं 15 संपावणट्ठाए। एवामेव समणाउसो ! जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा इमस्स ओरालियसरीरस्सड 15 वंतासवस्स पित्तासवस्स सुक्कासवस्स सोणियासवस्स जाव अवस्सं विप्पजहियव्वस्स नो वण्णहेउंट 15 (322) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SUTRA SAAAAAAAAAAAAAAAAAAnnnnnnnnnnnnnny Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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