Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 382
________________ अठाहरवाँ अध्ययन : सुसुमा ( ३११ ) सूत्र १९ : तए णं से चिलाए चोरसेणावई चोरणायगे जाव कुडंगे यावि होत्था | से णं तत्थ सीहगुहाए चोरपल्लीए पंचण्डं चोरस्याण य एवं जहा विजओ तहेव सव्वं जाव रायगिहस्स नगरस्स दाहिण पुरच्छिमिल्लं जणवयं जाव णित्थाणं निद्धणं करेमाणे विहर | सूत्र १९ : चिलात चोरों का नायक और सबका आश्रयदाता हो गया । सिंहगुफा में अपने अधीन पाँच सौ चोरों के साथ रहता हुआ विजय की तरह राजगृह के दक्षिण-पूर्व के प्रदेश को आतंकित करने लगा। (विस्तृत विवरण पूर्व सूत्र १२-१३ के समान ) । 19. Chilat became the leader and protector of all the thieves. Living in the Simha-Gupha with his gang of five hundred thieves Chilat started terrorizing the area south-east of Rajagriha. (details as para 12, 13) सूत्र २० : तए णं से चिलाए चोरसेणावई अन्नया कयाइं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं उवक्खडावेत्ता पंच चोरसए आमंते । तओ पच्छा पहाए कयबलिकम्मे भोयणमंडवंसि तेहिं पंचहिं चोरसएहिं सद्धिं विपुलं असणं पाणं खाइमं साइमं सुरं च जाव पसण्णं च आसाएमाणे वसाएमाणे परिभाएमाणे परिभुंजेमाणे विहरइ । जिमियभुत्तुत्तरागए ते पंच चोरसए विपुलेणं धूव- पुप्फ-गंध-मल्लालंकारेणं सक्कारेइ, संमाणेइ, सक्कारित्ता सम्माणित्ता एवं वयासी सूत्र २० : एक दिन चिलात चोर सेनापति ने विपुल खाद्य सामग्री तैयार करवाकर अपने आधीन पाँच सौ चोरों को भोजन के लिए आमन्त्रित किया। स्नानादि के बाद तैयार हो भोजन मण्डप में उनके साथ भोजन तथा विभिन्न प्रकार की मदिरा आदि का आस्वादन, विस्वादन, वितरण एवं परिभोग किया। फिर सभी आमन्त्रित पाँच सौ चोरों का यथेष्ट धूप-गंध-माला - अलंकार आदि से विधिवत् सत्कार-सम्मान किया और उनसे बोला 20. One day he made arrangements for a great feast and invited all the members of his gang. He himself got ready after his bath and joined them in the pavilion to taste, relish, distribute, and enjoy the food and a variety of beverages. After the feast he formally honoured the guests with perfumes, flowers, dresses, ornaments and other gifts and said - धन्य सार्थवाह के घर की लूट सूत्र २१ : एवं खलु देवाणुप्पिया ! रायगिहे णयरे धणे णामं सत्थवाहे अड्ढे । तस्स णं धूया भद्दाए अत्तया पंचण्हं पुत्ताणं अणुमग्गजाइया सुंसुमा णामं दारिया यावि होत्था अहीणा जाव सुरूवा । तं गच्छामो णं देवाणुप्पिया ! धण्णस्स सत्थवाहस्स गिहं विलुंपामो । तुब्भं विपुले धण-कणग जाव सिलप्पवाले, ममं सुंसुमा दारिया ।' तए णं ते पंच चोरसया चिलायस्स चोरसेणावइस्स एयमहं पडिसुर्णेति । CHAPTER-18: SUMSUMA Jain Education International For Private Personal Use Only (311) 5 www.jainelibrary.org

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