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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
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But this compelling attraction of the sense of smell is harmful in the same way that the alluring fragrance of Ketaki and other flowers draws a snake out of its hole and causes it to suffer the pain of captivity and death. (6) तित्त-कडुयं कसायंब-महुरं बहुखज्ज - पेज्ज - लेझे | आसायंति उ गिद्धा, रमंति जिब्भिंदियवसट्टा ॥७ ॥
पेय
जिह्वा-इन्द्रिय के वशीभूत हुए प्राणी कडवे, तीखे, कसैले खट्टे तथा मधुर रस वाले खाद्य, तथा लेह्य (चाटने योग्य) पदार्थों के सेवन में आनन्द अनुभव करते हैं ॥ ७ ॥
The beings who are slaves of the sense of taste consider relishing savoury preparations, solid, semi-solid, and liquid, having bitter, hot, pungent, sour, and sweet flavours to be the source of bliss. (7)
किन्तु यह जिह्वा - इन्द्रिय का दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण है जैसे - मछेरे के काँटे में लगे माँस के टुकड़े से आकर्षित हो उसे निगलने वाली मछली गले में अटके काँटे द्वारा जल से बाहर खींच ली जाती है और तड़प-तड़प कर प्राण त्याग देती है ॥ ८ ॥
जिब्भिंदियदुद्दन्त-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जंगललग्गुक्खित्तो, फुरइ थलविरल्लिओ मच्छो ॥८ ॥
But this compelling attraction of the sense of taste is harmful in the same way that the piece of meat attached to the fish-hook lures the fish who bites it and is drawn out of water to die a slow writhing death. (8)
स्पर्शेन्द्रिय के वशीभूत हुए प्राणी उसकी लोलुपता के कारण विभिन्न ऋतुओं से सम्बन्धित सुख भोगते हैं तथा समृद्धि और वैभव के प्रतीक व मन को सुखदायक लगने वाले स्पर्श एवं स्त्री आदि पदार्थों के रमण में आनन्द अनुभव करते हैं ॥ ९ ॥
उउ भयमाण- सुहेसु य, सविभव - हियय - मणनिव्वुइकरेसु । फासेसुरज्जमाणा, रमंति फासिंदियवसट्टा ॥९॥
The beings who are slaves of the sense of touch consider enjoying various seasonal pleasures, the possession of symbols of wealth and grandeur, and carnal pleasures derived out of fondling the female body and other such objects to be the source of bliss. (9)
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किन्तु यह स्पर्शनेन्द्रिय का दुर्दान्त आकर्षण वैसा ही दोषपूर्ण व दुःखदायी है जैसे हस्तिनी के स्पर्श के लिए लुब्ध हुआ मत्त गजराज पकड़ा जाता है और तीखे लौह अंकुश का अपने मस्तक पर वार सहता है ॥ १० ॥
फासिंदियदुद्दन्त-तणस्स अह एत्तिओ हवइ दोसो । जं खणइ मत्थयं कुंजरस्स लोहंकुसो तिक्खो ॥ १० ॥
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