Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 367
________________ % 33 तज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्ज्जी उपसंहार - 15 ज्ञाता धर्मकथा की इस सत्रहवीं कथा में विभिन्न इन्द्रियों के विषयों में आसक्ति के दुष्परिणाम र तथा अनासक्ति द्वारा आत्मिक विकास की बात को विस्तार से समझाया है। सभी दुःखों के मूल में S 15 आसक्ति के आवरण द्वारा विवेक का ढक दिया जाना है यह बात सरल उदाहरण से पूर्णतया स्पष्ट टे| 15 हो जाती है। CONCLUSION 2 This seventeenth story of Jnata Dharma Katha explains in detail theç unhealthy consequences of indulgence in various sensual pleasures and the attainment of spiritual uplift with the help of detachment. With the help of a simple example it has been made clear that at the root of all sorrows is the 15 veiling of rational thinking by attachment. | उपनय गाथा DDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD जह सो कालियदीवो अणुवमसोक्खो तहेव जइधम्मो। जह आसा तह साहू, वणियव्वऽणुकूलकारिजणा॥१॥ जह सद्दाइ-अगिद्धा पत्ता नो पासबंधणं आसा। तह विसएसु अगिद्धा, वज्झंति न कम्मणा साहू ॥२॥ जह सच्छंदविहारो, आसाणं तह य इह वरमुणीणं। जर - मरणाइविवज्जिय - संपत्ताणंद - निव्वाणं ॥३॥ जह सद्दाइसु गिद्धा, बद्धा आसा तहेव विसयरया। पावेंति कम्मबंधं, परमासुहकारणं घोरं॥४॥ जह ते कालियदीवा णीया अन्नत्थ दुहगणं पत्ता। तह धम्मपरिब्भट्ठा, अधम्मपत्ता इहं जीवा ॥५॥ पावेंति कम्म-नरवइ-वसया संसार-वाहयालीए। आसप्पमद्दएहि व, नेरइयाईहिं दुक्खाई॥६॥ 5 (298) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA मnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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