Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 355
________________ 5 ( २८८ ) 18. Then, they arranged in heaps the fragrant things that appealed to the sense of smell in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves. सूत्र १९ : जत्थ जत्थ णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वा, तुयट्टंति वा, तत्थ तत्थ गुलस्स जाव अन्नेसिं च बहूणं जिब्भिंदियपाउग्गाणं दव्वाणं पुंजे य पियरे य करेंति, करिता वियरए खणंति, खणित्ता गुलपाणगस्स खंडपाणगस्स पोरपाणगस्स अन्नेसिं च बहूणं पाणगाणं वियरे भरेंति, भरित्ता तेसिं परिपेरतेणं पासए ठवेंति जाव चिट्ठति । सूत्र १९ : इसी प्रकार घोड़ों के सोने, बैठने, घूमने के स्थान पर गुड़, शक्कर आदि स्वाद को रुचने वाले तथा जीभ को लुभाने वाले पदार्थ सजा दिये, उनके ढेर लगा दिये, तरल पदार्थों को गड्ढों में भर दिया और आस-पास जाल बिछा दिये। 19. After that, they arranged the savoury things that appealed to taste buds, putting solids in heaps and the liquids in ditches, in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves. ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सूत्र २० : जहिं जहिं च णं ते आसा आसयंति वा, सयंति वा, चिट्ठति वां, तुयट्टंति वा, तहिं तहिं च णं ते बहवे कोयवया य जाव सिलावट्टया अण्णाणि य फासिंदियपाउग्गाई अत्थुय-पच्चत्थुयाई ठवेंति, ठवित्ता तेसिं परिपेरतेणं जाव चिट्ठति । सूत्र २० : अन्त में उन्होंने घोड़ों की स्पर्श इन्द्रिय को भले लगने वाले रुई के, ऊन के, चमड़े के विविध सामान भी सजा दिये। गुप्त जाल बिछा दिये और स्वयं आस-पास वृक्षों-पत्रों आदि की ओट में छुप गये। 20. Finally they arranged the soft objects made of cotton, wool, leather etc. that appealed to the sense of touch in the areas frequented by the horses, fixed snares and waited concealing themselves in the nearby foliage. अनासक्ति का लाभ सूत्र २१ : तए णं ते आसा जेणेव एए उक्किट्ठा सद्द-फरिस - रस-रूव-गंधा तेणेव उवागच्छंति, ' उवागच्छित्ता तत्थ णं अत्थेगइया आसा 'अपुव्वा णं इमे सद्द-फरिस - रस- रूव-गंधा' इति कट्टु तेसु उक्किट्ठेसु सह-फरिस - रस-रूव-गंधेसु अमुच्छिया अगढिया अगिद्धा अणज्झोववण्णा, तेसिं उक्किट्ठाणं सद्द जाव गंधाणं दूरंदूरेणं अवक्कमंति, ते णं तत्थ पउरगोयरा पउरतण - पाणिया णिभयाणिरुव्विग्गा सुहंसुहेणं विहरति । सूत्र २१ : कुछ समय बाद वे घोड़े वहाँ आये जहाँ यह सब उत्कृष्ट, सुन्दर, मनमोहक, शब्द, स्पर्श, रस, रूप और गंध युक्त वस्तुएँ रखीं थीं। उनमें से अनेक अश्व यह सोचकर कि ये सभी JNATA DHARMA KATHANGA SUTRA ( 288 ) 5 Jain Education International For Private Personal Use Only फ www.jainelibrary.org

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