Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 338
________________ - - । ऊUDDDDDDDDDDDDDDDDDDDDD P सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २७१ ) डा 15 GETTING LIBERATED 219. "Beloved of gods! While we were moving around in the city to collect alms we heard that Tirthankar Arishtanemi has breathed his last. So it R would be good if we abandon this food that was collected before getting the # news of the Nirvana of the Tirthankar, slowly climb the Shatrunjaya mountain, take the ultimate vow, indulge in the activities that weaken and eliminate karmas, and go into meditation without the desire of death." They all agreed and disposed of the food they had collected at the proper place and > left for Shatrunjaya mountain. After arriving there they commenced the si 2 practices as they had decided. र सूत्र २२0 : तए णं ते जुहिट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा सामाइयमाइयाई चोद्दस पुव्वाइंट 15 अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता दो मासियाए संलेहणाए अत्ताणं झोसित्ता डा र जस्सट्ठाए कीरइ णग्गभावे जाव तमढें आराहेंति। आराहित्ता अणंते जाव केवलवरनाणदंसण टा र समुप्पाडेत्ता जाव सिद्धा। 15 सूत्र २२० : युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने सामायिक से आरम्भ कर चौदह पूर्वो का डी र अभ्यास करते हुए अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन का पालन किया था, और अन्त में दो मास की टी 15 संलेखना से आत्मा को शुद्ध किया। अंततः जिस उद्देश्य से नग्नत्व तथा मुंडित होना अंगीकार किया दर 15 जाता है वह उद्देश्य प्राप्त किया। उन्हें श्रेष्ठ केवलज्ञान और केवलदर्शन प्राप्त हुए और वे सिद्ध हो डा र गये। 15 220. The five ascetics including Yudhishthir had studied the fourteen 5 sublime canons and led a long ascetic life. In the end they took the ultimate 15 vow of two months' duration and purified their souls. At last they achieved the goal for which they had shaved their heads and got initiated. They attained the supreme Keval Jnana and Keval Darshan and became Siddhs 1B (the pure and liberated state of soul) 15 सूत्र २२१ : तए णं सा दोवई अज्जा सुव्बयाणं अज्जियाणं अंतिए सामाइयमाइयाइंड र एक्करस्स अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणित्ता मासियाए ही र संलेहणाए आलोइयपडिक्कंता कालमासे कालं किच्चा बंभलोए उववन्ना। 15 सूत्र २२१ : उधर दीक्षा लेने के पश्चात् आर्या द्रौपदी ने आर्या सुव्रता के पास सामायिक से र लेकर ग्यारह अंगों का अध्ययन करते हुए अनेक वर्षों तक श्रमण जीवन का पालन किया। अन्त में टी 5 एक मास की संलेखना, आलोचना और प्रतिक्रमण करके यथासमय देह त्याग किया और ब्रह्मलोक दा 5 में जन्म लिया। 221. In the mean time, after getting initiated Arya Draupadi studied the ven canons starting with the Samayik and spent a long and disciplined APTER-16: AMARKANKA ( 271) टा 卐nnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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