Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 347
________________ - र ( २८०) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 माँझी ने उन्हें उत्तर दिया-“देवानुप्रियो ! तूफान के कारण मेरी नियंत्रण बुद्धि नष्ट हो गई है दी र और मुझे यह भान नहीं हो रहा है कि नाव किस दिशा में और कहाँ जा रही है। इसी कारण मैं ड र भग्न संकल्प हो चिन्तित हो गया हूँ।" - धUUUUUUUUUUUUUUUUUण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण 5 FREEDOM FROM TROUBLES 5. Seeing all this, the passengers and the crew including many rowers, navigators, labourers, and the traders approached the captain and asked, र “Beloved of gods! What ails you? Why have you lost your poise and are S B worrying with your chin in your palm?" The captain replied, “Beloved of gods! Due to this storm I have lost my capacity to control the ship and I am unaware of the position and the ? direction of movement of the ship. That is the reason I have lost my poises 12 and become anxious." 15 सूत्र ६ : तए णं ते कण्णधारा तस्स णिज्जामयस्स अंतिए एयमलु सोच्चा णिसम्म भीया ड र तत्था उव्विग्गा उव्विग्गमणा व्हाया कयबलिकम्मा करयल-परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए । 5 अंजलिं कटु बहूणं इंदाणं य खंदाण य जहा मल्लिनाए जाव उवायमाणा उवायमाणा चिट्ठति। द र सूत्र ६ : माँझी की यह बात सुन समझकर नाव के सभी यात्री व कर्मचारी भयभीत, त्रस्त वड र उद्विग्न हो गये। उन्होंने स्नान, बलिकर्म आदि किया और हाथ जोड़ कर इन्द्र, स्कन्द आदि ट 15 अपने-अपने इष्ट देवों को याद करने लगे, उनकी मनौती मनाने लगे। (विस्तार अर्हन्नक की कथा, ढ र के अध्ययन ८ के अनुसार) 5 6. Hearing this from the captain all the passengers and the crew became 15 worried, fearful, and panicky. They cleansed themselves by bathing and other 5 rituals and started remembering, and calling for help to their deities < 12 including Indra and Skand. (details as in ch. 8 story of Arhannak) सूत्र ७ : तए णं से णिज्जामए तओ मुहुत्तंतरस्स लद्धमईए, लद्धसुईए, लद्धसण्णे टा 15 अमूढदिसाभाए जाए यावि होत्था। तए णं से णिज्जामए ते बहवे कुच्छिधारा य कण्णधारा यड र गभिल्लगा य संजत्ता णावा वाणियगा य एवं वयासी-'एवं खलु अहं देवाणुप्पिया ! लद्धमईए ? 5 जाव अमूढदिसाभाए जाए। अम्हे णं देवाणुप्पिया ! कालियदीवंतेणं संवूढा, एस णं कालियदीवे द र आलोक्कइ। 5 सूत्र ७ : कुछ समय बाद उस माँझी की बुद्धि, अनुभव, संज्ञा लौट आये और उसकी मूढता द 15 समाप्त हो गई। उसने अपने सहकर्मियों तथा यात्रियों से कहा-देवानुप्रियो ! मेरी मति स्वस्थ हो गई डी र है और अब मैं दिग्भ्रांत नहीं रहा। हम लोग कालिक द्वीप के निकट आ पहुंचे हैं। देखिये, वह था 15 कालिक द्वीप दिखाई पड़ रहा है।" र (280) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA! SAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn) UUUN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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