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D U 2 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २६९ ) हा 5 Yudhisthir also heard this news and deliberated, “Beloved of gods! S > Wandering from one place to another Arihant Arishtanemi has come to the > Surashtra area. So we should take permission from our Sthavir guru and go
to him to pay our homage." They all agreed and went to the Sthavir ascetic. After conveying due obeisance they asked, “Bhante! With your permission we want to go to Arihant Arishtanemi to pay our homage."
Sthavir Bhagavant replied, “Beloved of gods! Do as you please."
सूत्र २१६ : तए णं ते जहुट्ठिलपामोक्खा पंच अणगारा थेरेहिं अब्भणुनाया समाणा थेरेस 5 भगवंते वंदंति, णमंसंति, वंदित्ता णमंसित्ता थेराणं अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ताड र मासंमासेण अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं गामाणुगामं दूइज्जमाणा जाव जेणेव हत्थिकप्पे नयरे तेणेव दे 5 उवागच्छंति, उवागच्छित्ता हत्थिकप्पस्स बहिया सहसंबवणे उज्जाणे जाव विहरंति। २ सूत्र २१६ : युधिष्ठिर आदि पाँचों मुनियों ने स्थविर भगवन्त से आज्ञा प्राप्त कर उन्हें वन्दना
नमस्कार की, और वहाँ से प्रस्थान किया। निरन्तर मासखमण तप करते हुए, एक गाँव से दूसरे ८ 15 गाँव विहार करते हुए हस्तीकल्प नगर के बाहर सहस्राम्रवन उद्यान में पहुंचे। 2 216. The five ascetics including Yudhishthir formally bowed before hima 5 after getting permission and commenced their journey. Doing a chain of one
month long fasts they crossed one village and then other and reached at the 15 Sahasramravan garden outside Hastikalp city.
र सूत्र २१७ : तए णं ते जुहिट्ठिलवज्जा चत्तारि अणगारा मासखमणपारणए पढमाए 15 पोरिसीए सज्झायं करेंति, बीयाए एवं जहा गोयमसामी, णवरं जुहिटिलं आपुच्छंति, जाव ड 15 अडमाणा बहुजणसई णिसामेंति-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी उज्जिंतसेलसिहरे । र मासिएणं भत्तेणं अपाणएणं पंचहिं छत्तीसेहिं अणगारसएहिं सद्धिं कालगए सिद्ध बुद्धे मुत्ते टा
अंतगडे सव्वदुक्खप्पहीणे।' र सूत्र २१७ : वहाँ युधिष्ठिर के अतिरिक्त शेष चारों अनगारों ने मासखमण के पारणे के दिन टी 5 प्रथम प्रहर में स्वाध्याय तथा दूसरे प्रहर में ध्यान किया। (चर्या का शेष वर्णन गौतम स्वामी के दी 5 समान)। फिर वे युधिष्ठिर अनगार से अनुमति ले भिक्षा हेतु निकले। चलते-चलते उन्होंने अनेक डा र लोगों को चर्चा करते सुना-"देवानुप्रियो ! तीर्थंकर अरिष्टनेमि उज्जयंत पर्वत गिरनार पर्वत के डी र शिखर पर एक मास का निर्जल उपवास करके पाँच सौ छत्तीस श्रमणों के साथ सिद्ध, बुद्ध, मुक्त, टी 15 अन्तकृत् होकर समस्त दुःखों से रहित हो गये हैं।" र 217. There, on the day of the breakfast, leaving aside Yudhishthir the > other four ascetics spent the first quarter of the day doing their studies and
the second quarter doing meditation (detailed description of the daily routine 5 same as in case of Gautam Swami). After this they took permission from
5 CHAPTER-16 : AMARKANKA
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