Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 335
________________ र ( २६८ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र | 15 सूत्र २१४ : कालान्तर में वे स्थविर मुनि पाण्डु-मथुरा के सहस्राम्रवन उद्यान से निकले और ड र बाहर जनपदों में विचरने लगे। 15 214. Later the Sthavir ascetic left Sahasramravan and Pandu-Mathura and resumed his itinerant life. 5 यात्रा व तपस्या ___ सूत्र २१५ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अरिहा अरिठ्ठनेमी जेणेव सुरट्ठाजणवए तेणेव दे 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता सुरद्वाजणवयंसि संजमेण तवसा अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। ___तए णं बहुजणो अन्नमन्नस्स एवमाइक्खइ-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरिहा अरिट्ठनेमी टी र सुरट्ठाजणवए जाव विहरइ। तए णं से जुहिडिल्लपामोक्खा पंच अणगारा बहुजणस्स अंतिए ड र एयमहँ सोच्चा अन्नमन्नं सद्दावेंति, सद्दावित्ता एवं वयासी ___‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! अरहा अरिट्ठनेमी पुव्वाणुपुव्विं जाव विहरइ, तं सेयं खलु अम्हं डा र थेरे भगवंते आपुच्छित्ता अरहं अरिट्टनेमि वंदणाए गमित्तए।' अन्नमन्नस्स एयमढें पडिसुणेति, ट 15 पडिसुणित्ता जेणेव थेरा भगवंतो तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता थेरे भगवंते वंदंति, नमसंति, ड र वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-'इच्छामो णं तुब्भेहिं अब्भणुनाया समाणा अरहं अरिठ्ठनेमिं जावटी 15 गमित्तए।' 'अहासुहं देवाणुप्पिया !' 15 सूत्र २१५ : काल के उस भाग में अरिहंत अरिष्टनेमि सुराष्ट्र जनपद में पधारे। वे तप और डी र संयम द्वारा आत्मा को भावित करते हुए सुराष्ट्र जनपद में विचरने लगे। वहाँ पर अनेक लोग ही 15 परस्पर चर्चा कर रहे थे कि तीर्थंकर अरिष्टनेमि सुराष्ट्र (सौराष्ट्र) जनपद में विचर रहे हैं। र युधिष्ठिर आदि पाँचों अनगारों ने भी जन-मुख से यह समाचार सुने और परस्पर विमर्श करने S र लगे-“देवानुप्रियो !अरिहंत अरिष्टनेमि अनुक्रम से विचरते हुए सुराष्ट्र जनपद में पधारे हैं। अतः । 15 स्थविर गुरु से अनुमति लेकर उन्हें वन्दन करने जाना हमारे लिए अच्छा होगा।" सब अनगार इस द बात पर सहमत हो स्थविर भगवंत के पास गये और यथाविधि वन्दना करके पूछा-“भगवन्त ! र आपकी अनुमति लेकर हम अरिहंत अरिष्टनेमि को वन्दन करने जाना चाहते हैं।" स्थविर भगवन्त ने कहा-“देवानुप्रियो ! जिसमें तुम्हें सुख प्राप्त हो वही करो। TRAVEL AND PENANCE 215. During that period of time Arihant Arishtanemi came to Surashtra area. He started moving around in Surashtra doing his spiritual practices of a penance and discipline. People were telling each other that Arihant Arishtanemi is wandering in the Surashtra area. The five ascetics including , (268) JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪT انعككمتکلمهلكادE Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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