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DIKSHA OF PANDAVS
210. During that period of time Sthavir Dharmaghosh arrived there. A delegation of citizens including the Pandavs went to his discourse. After the discourse the Pandavs said to the great ascetic, "Beloved of gods! We are filled with a feeling of detachment from the mundane life. We shall seek approval of queen Draupadi and crown prince Pandusen, and after that come to you to accept Diksha after shaving our heads."
Sthavir Dharmaghosh said, "Beloved of gods! Do as you please."
सूत्र २११ : तए णं ते पंच पंडवा जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता दोवई देविं सद्दावेंति सद्दावित्ता एवं वयासी - ' एवं खलु देवाणुप्पिए ! अम्हेहिं थेराणं अंतिए धम् णिसंते जाव पव्वयामो, तुमं देवाणुप्पिये ! किं करेसि ? '
तए णं सा दोवई देवी ते पंच पंडवे एवं वयासी - ' जइ णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! संसारभउव्विग्गा पव्वयह, ममं के अण्णे आलंबे वा जाव भविस्सइ ! अहं पियणं संसारभउव्विग्गा. देवाणुप्पिएहिं सद्धिं पव्वइस्सामि । '
ज्ज्फ ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
सूत्र २११ : पाँचों पाण्डव अपने महल में लौटे और द्रौपदी देवी को बुलाकर कहा" देवानुप्रिये ! हमने स्थविर मुनि का उपदेश सुना है और संसार त्याग कर दीक्षा लेने का निर्णय किया है। तुम्हें क्या करना है ?"
द्रौपदी ने उत्तर दिया- “देवानुप्रियो !जब आप संसार भय से उद्विग्न हो दीक्षा ले लेते हैं तो मेरा यहाँ अन्य क्या अवलम्बन रह जायेगा ? ऐसी स्थिति में संसार के भय से उद्विग्न मैं भी आपके साथ ही दीक्षा अंगीकार करूँगी।"
211. The Pandavs returned to their palace, called Draupadi and said, "Beloved of gods! We have listened to the discourse of the Sthavir ascetic and have decided to renounce the world to get initiated. What do you want to do?"
Draupadi replied, "Beloved of gods! When you are disturbed by the fears of the mundane world and want to get initiated I will be left with no support and purpose. In this situation I will also accept Diksha as I am also disturbed by the fears of the mundane world."
सूत्र २१२ : तए णं पंच पंडवा पंडुसेणस्स अभिसेओ जाव राया जाव रज्जं पसासेमाण विहरइ । तए णं ते पंच पंडवा दोवई य देवी अन्नया कयाइं पंडुसेणं रायाणं आपुच्छंति ।
तए णं से पंडुसेणे राया कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! निक्खमणाभिसेयं करेह, जाव पुरिससहस्सवाहिणीओ सिवियाओ उवट्टवेह | ' जाव पच्चोरुहंति । जेणेव थेरा तेणेव आलित्ते णं जाव समणा जाया । चोद्दसपुव्वाइं अहिज्जंति,
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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