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AUDजक सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २६५)दा र सूत्र २०९ : तए णं सा दोवई देवी अन्नया कयाइ आवण्णसत्ता जाया यावि होत्था। तए णं दी
दोवई देवी णवण्हं मासाणं बहुपडिपुण्णाणं जाव सुरूवं दारगं पयाया सूमालं, कोमलय ड र गयतालुयसमाणं। णिव्वत्तबारसाहस्स इमं एयारूवं गोण्णं गुणनिष्फण्णं नामधेज्जं करेंति-जम्हा णं 15 अम्हं एस दारए पंचण्हं पंडवाणं पुत्ते दोवईए देवीए अत्तए, तं होउ अम्हं इमस्स दारगस्स ट 15 णामधेज्जं 'पंडुसेणे'।
तए णं तस्स दारगस्स अम्मापियरो णामधेज्जं करेंति पंडुसेण त्ति। ___ बावत्तरिं कलातो जाव भोग समत्थे। जाते जुवराय जाव विहरति। 5 सूत्र २०९ : कालान्तर में द्रौपदी देवी गर्भवती हुई और उसने यथासमय सुन्दर सुकुमार और ट 15 हाथी के तालू जैसे कोमल शरीर वाले पुत्र को जन्म दिया। बारह दिन बीतने पर बालक के ड र माता-पिता ने निर्णय लिया कि यह बालक पाँच पाण्डवों का पुत्र और द्रौपदी का आत्मज है अतः । ए इसका नाम पाण्डुसेन होना चाहिए। र तब उन्होंने समारोह पूर्वक बालक का नाम पाण्डुसेन रख दिया। 5 पाण्डुसेन क्रमशः बड़ा हुआ। बहत्तर कलाओं का ज्ञाता बना। युवा होने पर उसका पाणिग्रहण
हुआ और फिर युवराज बनकर रहने लगा। र 209. With passage of time Draupadi conceived and in due course gave
h to a son who was beautiful, delicate, and tender as the palate of an c elephant. After twelve days of his birth the parents decided that as he was
e son of the Pandays and Draupadi he should be called Pandusen. 2 Accordingly they performed his naming ceremony with great festivities.
As time passed Pandusen grew up and learned the seventy two arts. When he came of age he was married and made the heir to the throne.
पाण्डवों की दीक्षा 5 सूत्र २१0 : तेणं कालेणं तेणं समएणं धम्मघोसा थेरा समोसढा। परिसा निग्गया। पंडवा र निग्गया, धम्म सोच्चा एवं वयासी-'जं णवरं देवाणुप्पिया ! दोवइं देविं आपुच्छामो, पंडुसेणं च । 15 कुमारं रज्जे ठावेमो, तओ पच्छा देवाणुप्पियाणं अंतिए मुंडे भवित्ता जाव पव्वयामो।' र 'अहासुहं देवाणुप्पिया !'
__ सूत्र २१० : काल के उस भाग में वहाँ धर्मघोष स्थविर पधारे। परिषद निकली और पाँचों में र पाण्डव भी उपदेश सुनने गये। बाद में उन्होंने स्थविर मुनि से कहा-“देवानुप्रिय ! हमें संसार से र विरक्ति हो गई है। हम द्रौपदी देवी से आज्ञा लेकर तथा कुमार पाण्डुसेन को राजसिंहासन पर । 5 स्थापित करने के पश्चात् आपके निकट मुण्डित हो दीक्षा ग्रहण करेंगे।"
स्थविर धर्मघोष ने कहा-“देवानुप्रियो ! जिसमें तुम्हें सुख मिले वह करो।" R CHAPTER-16 : AMARKANKA
(265) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAnn
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