Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 334
________________ सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६७ ) अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्ठट्टम - दसम - दुवालसेहिं मासद्ध-मासखमणेहिं अप्पा भावे विहरति । सूत्र २१२ : तब पाण्डवों ने कुमार पाण्डुसेन का राज्याभिषेक कर दिया । पाण्डुसेन कुशलता पूर्वक राज्य संचालन करने लगे। कालान्तर में पाँचों पाण्डवों तथा द्रौपदी ने पाण्डुसेन राजा से दीक्षा की अनुमति माँगी | पाण्डुसेन ने अपने सेवकों को बुलाया और कहा -" -" देवानुप्रियो ! शीघ्र ही दीक्षा - महोत्सव की तैयारी करो और हजार पुरुष उठायें ऐसी विशाल पालकियाँ तैयार कराओ।" सेवकों ने आज्ञा का पालन किया और पाण्डवों ने द्रौपदी सहित समारोह पूर्वक यथाविधि धर्मघोष स्थविर के पास जाकर दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के पश्चात् उन्होंने चौदह पूर्वों का अध्ययन किया और बेला-तेला-चोला यावत् अर्ध-मासखमण आदि कठिन तपस्या करते हुए आत्मोन्नति की और प्रयत्नशील हो साधु जीवन बिताने लगे । 212. The Pandavs crowned their son prince Pandusen and he took the reigns of the state in his able hands. Later the Pandavs and Draupadi sought permission for Diksha from king Pandusen. Pandusen called his servants and said, "Beloved of gods! Make arrangements for the Diksha ceremony and get Purisasahassa palanquins ready." The servants did as told and the five Pandavs with Draupadi ceremoniously went to the camp of Dharmaghosh Sthavir and there the Pandavs got initiated. With passage of time they acquired the knowledge of the fourteen sublime canons and started doing various penances including two day, three day, four day, and a fortnight long fasts for their spiritual advancement. सूत्र २१३ : तए णं सा दोवई देवी सीयाओ पच्चोरुहइ, जाव पव्वइया सुब्वयाए अज्जाए सिस्सिणीयत्ताए दल गति । इक्कारस अंगाई अहिज्जइ, अहिज्जित्ता बहूणि वासाणि छट्ठट्ठम-दसम-दुवालसे हें जाव विहर । सूत्र २१३ : तब द्रौपदी देवी भी पालकी से उतरी और उसने भी दीक्षा ले ली। वह सुव्रता आर्या की शिष्या के रूप में दी गई। उसने भी ग्यारह अंगों का अध्ययन किया और बेला- तेला आदि अनेक प्रकार का कठिन तप करती हुई संयम जीवन बिताने लगी । 213. After this Draupadi also got down from the palanquin and she also got initiated. She became the disciple of Suvrata Arya. She also studied the eleven canons and commenced the harsh and disciplined ascetic life. सूत्र २१४ : तए णं थेरा भगवंतो अन्नया कयाई पंडुमहुराओ णयरीओ सहस्संबवणाओ उज्जाणाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता बहिया जणवयविहारं विहरति । CHAPTER - 16 : AMARKANKA Jain Education International For Private Personal Use Only (267) www.jainelibrary.org

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