Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 306
________________ - ( २४१ ) 2 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका र तए णं कण्हे वासुदेवे कच्छुल्लं णारयं एवं वयासी-तुब्भं चेव णं देवाणुप्पिया ! एवं डा पुव्वकम्म।' र तए णं से कच्छुल्लनारए कण्हेणं वासुदेवेणं एवं वुत्ते समाणे उप्पयणिं विजं आवाहेइ, SI र आवाहित्ता जामेव दिसिं पाउब्भूए तामेव दिसिं पडिगए। र सूत्र १६२ : वासुदेव श्रीकृष्ण ने कच्छुल्ल नारद से पूछा-“देवानुप्रिय ! आप अनेक ग्रामादि में ए जाते हैं क्या कहीं आपको द्रौपदी के सम्बन्ध में कोई सूचना या जानकारी मिली है।" र नारद ने उत्तर दिया-“देवानुप्रिय ! एक बार मैं धातकीखण्ड द्वीप में पूर्व दिशा के दक्षिणार्धS र भरतक्षेत्र में अमरकंका नाम की राजधानी में गया था। वहाँ मैंने राजा पद्मनाभ के भवन में द्रौपदी ट 15 देवी जैसी महिला देखी थी।" श्रीकृष्ण बोले-“देवानुप्रिय ! यह सब आपका ही किया-धरा जान पड़ता है ?" ___ श्रीकृष्ण के ये वचन सुनकर नारद उत्पतनी विद्या का आह्वान कर जिधर से आये उधर ही ड र वापस चले गये। UOOO NEWS FROM NARAD ई 162. Krishna Vasudev asked Kacchull Narad, "Beloved of gods! You go around to many villages, cities, etc. Did you get any news or information ci about Draupadi?” Narad replied, “Beloved of gods! Once I went to Amarkanka city in the 5 southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. There, in the palace of King Padmanaabh I saw a lady who resembled Ç Draupadi." Krishna, “Beloved of gods! It appears to be your doing?" 15 Kacchull Narad at once invoked the Utpatni power and took off in the 5 direction he came from. ___ सूत्र १६३ : तए णं से कण्हे वासुदेवे दूयं सद्दावेई, सद्दावित्ता एवं वयासी-गच्छह णं तुम दा र देवाणुप्पिया ! हथिणआउरं, पंडुस्स रण्णो एयम निवेदेहि-‘एवं खलु देवाणुप्पिया ! धायइसंडे । र दीवे पुरथिमद्धे अमरकंकाए रायहाणीए पउमनाभस्स-भवणंसि दोवईए देवीए पउत्ती उवलद्धा। टी र तं गच्छंतु णं पंच पंडवा चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडा पुरत्थिम-वेयालीए ममं ही पडिवालेमाणा चिटुंतु।' र सूत्र १६३ : श्रीकृष्ण वासुदेव ने अपना दूत बुलाया और उसे आज्ञा दी-“देवानुप्रिय ! र हस्तिनापुर जाकर राजा पाण्डु से यह निवेदन करो-“हे देवानुप्रिय ! धातकीखण्ड द्वीप के पूर्वार्ध ८ 5 CHAPTER-16 : AMARKANKA ( 241) टा Fnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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