Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 310
________________ र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका (२४५ ) SI 15 सूत्र १७१ : ते णं से सुट्टिए देवे कण्हं वासुदेवं एवं वयासी-‘एवं होउ।' पंचहिं पंडवेहिं डा र सद्धिं अप्पछट्ठस्स छण्हं रहाणं लवणसमुद्दे मग्गं वियरइ। 15 सूत्र १७१ : सुस्थित देव ने-“ऐसा ही हो" कहकर छहों रथों को लवण समुद्र में गमन का डा 12 मार्ग प्रदान कर दिया। 5 171. Susthit god said, “As you wish,” and gave the desired passage 5 through the sea. 5 सूत्र १७२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे चाउरंगिणिं सेणं पडिविसज्जेइ, पडिविसज्जित्ता पंचहिट 15 पंडवेहिं सद्धिं अप्पछटे छहिं रहेहिं लवणसमुई मज्झमझेणं वीईवयइ, वीईवइत्ता जेणेव डी र अमरकंका रायहाणी, जेणेव अमरकंकाए अग्गुज्जाणे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता रहं ठवेइ, टा 15 ठवित्ता दारुयं सारहिं सद्दावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी र सूत्र १७२ : वासुदेव कृष्ण ने चतुरंगिणी सेना को वापस विदा कर दिया और पाँच पाण्डवों 2 15 सहित स्वयं छह रथों में बैठकर लवणसमुद्र के बीच से होते हुए अमरकंका राजधानी के निकट जाद र पहुँचे। नगर के बाहर पहुँचकर प्रधान उद्यान में पहुंचे और अपने सारथी दारुक को बुलाकर कहा- ड 5 172. Krishna sent the armies back and in six chariots crossed the sea with a the five Pandavs to reach near Amarkanka city. He stopped in the main 5 garden outside the city and called his driver Daruk and said, 5 पद्मनाभ को चुनौती __ सूत्र १७३ : ‘गच्छह णं तुम देवाणुप्पिया ! अमरकंका रायहाणिं अणुपविसाहि, टा 15 अणुपविसित्ता पउमणाभस्स रण्णो वामेणं पाएणं पायपीढं अक्कमित्ता कुंतग्गेणं लेहं पणामेहि; डा र तिवलियं भिउडिं णिडाले साह? आसुरुत्ते रुटे कुद्धे कुविए चंडिक्किए एवं वदह–'हं भोट 5 पउमणाहा ! अपत्थिय-पत्थिया ! दुरंत-पंतलक्खाणा ! हीणपुण्णचाउद्दसा ! सिरि-हिरि-द र धीपरिवज्जिया ! अज्जं ण भवसि, किं णं तुम ण जाणासि कण्हस्स वासुदेवस्स भगिणिं दोवइड 5 देविं इहं हव्वं आणमाणे। तं एवमवि गए, पच्चप्पिणाहि णं तुमं दोवइं देविं कण्हस्स वासुदेवस्स, र अहवा णं जुद्धसज्जे ण्गिच्छाहि। एस णं कण्हे वासुदेवे पंचहिं पंडवेहि अप्पछडे दोवई देवीए डा 5 कूवं हव्वमागए।' र सूत्र १७३ : “देवानुप्रिय ! तुम जाओ और अमरकंका राजधानी में प्रवेश कर राजा पद्मनाभ र के निकट पहुँचो। वहाँ पहुँचकर उसके पादपीठ को अपने बायें पाँव से ठोकर मारकर अपने भाले । 5 की नोंक से यह पत्र दे दो। उसके बाद भृकुटि तान, कपाल पर सलवटें डाल, आँखे लालकर, रोष, टा क्रोध, और कोप से प्रचण्ड रूप धारण करके उससे कहना-'ओ पद्मनाभ ! अवांछित की वांछा डा र करने वाले ! अनन्त कुलक्षणों वाले ! चतुर्दशी को जन्मे पुण्यहीन ! श्री, लज्जा और बुद्धि से टा UUU UUUUUE PTER-16 : AMARKANKA Fennnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni ( 245) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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