Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 328
________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण DUDDDDDDDDDDDDDDDDDDजक र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २६१) सूत्र २0१ : तए णं कण्हे वासुदेवे तेसिं पंचण्हं पंडवाणं एयमहूँ सोच्चा णिसम्म आसुरुत्ते डा र जाव तिवलियं एवं वयासी-'अहो णं जया मए लवणसमुदं दुवे जोयणसयसहस्सा वित्थिन्नं दा 5 वीईवइत्ता पउमणाभं हयमहिय जाव पडिसेहित्ता अमरकंका संभग्गा, दोवई साहत्थिं उवणीया, ड र तया णं तुब्भेहिं मम माहप्पं ण विण्णायं, इयाणिं जाणिस्सह !' त्ति कट्ट लोहदंडं परामुसइ, 15 पंचण्हं पंडवाणं रहे चूरेइ, चूरित्ता णिव्विसए आणवेइ आणवित्ता तत्थ णं रहमद्दणे नाम कोटे SI र णिविटे। 15 सूत्र २0१ : पाण्डवों की यह बात सुनकर कृष्ण वासुदेव अतीव क्रुद्ध हो गये और उनके डा र ललाट पर तीन सल पड़ गये। वे बोले-“अहो, जब मैंने दो लाख योजन विस्तार वाले लवणसमुद्रट र को पार करके पद्मनाभ को क्षत-विक्षत और पराजित किया, अमरकंका को ध्वस्त किया और द 15 अपने हाथों द्रौपदी को लाकर तुम्हें सौंपा तब तुम्हें मेरे महात्म्य का परिचय नहीं मिला और अब S - तुम मेरा महात्म्य जान लोगे?" यह कहकर उन्होंने हाथ में एक लौहदण्ड लिया और पाण्डवों के ट 5 रथ को चूर-चूर कर दिया। पाण्डवों को देश निकाले की आज्ञा दे दी और उस स्थान पर रथ-मर्दन द 15 नामक कोट (स्थान) की स्थापना की। 201. Krishna got furious at this statement of the Pandavs and three creases appeared on his forehead. He said, "How foolish of you! You could not recognize my greatness when I crossed the two hundred thousand Yojan wide Lavan sea, subdued and conquered King Padmanaabh, destroyed 12 Amarkanka city, rescued Draupadi and brought her to you. But now you will K be able to recognize my greatness." And he took an iron rod and turned the 5 chariots of Pandavs to pulp. He exiled the five Pandavs and founded a 15 township at that spot naming it as Rath-mardan (breaking of the chariots). S र सूत्र २०२ : तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव सए खंधावारे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता ८ 15 सएणं खंधावारेणं सद्धिं अभिसमन्नागए यावि होत्था। तए णं से कण्हे वासुदेवे जेणेव बारवई ड र नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता बारवई णयरिं अणुपविसइ। 5 सूत्र २०२ : कृष्ण वासुदेव तब अपनी सेना के पड़ाव में आये और सेना सहित प्रयाण कर र द्वारका नगरी आ पहुंचे। 15 202. Krishna then returned to the place where his army had camped, ) 2 broke camp and returned to Dwarka. 5 सूत्र २०३ : तए णं ते पंच पंडवा जेणेव हत्थिणाउरे णयरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता डा र जेणेव पंडू राया तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता करयल जाव एवं वयासी-‘एवं ताओ ! अम्हे दी 15कण्हेणं णिव्विसया आणत्ता।' 15 CHAPTER-16 : AMARKANKA (261) FAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA CUUUUUUUN Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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