Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

View full book text
Previous | Next

Page 294
________________ प्रज्ज्ज्ज्ज् सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( २२९ ) समाणी ममं नो आढाइ, जाव नो पज्जुवासइ । तं सेयं खलु मम दोवईए देवीए विप्पियं करित्त ' त्ति कट्टु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पंडुयरायं आपुच्छइ, आपुच्छित्ता उप्पयणिं विज्जं आवाहेइ, आवाहित्ता ताए उक्किट्ठाए जाव विज्जाहरगईए लवणसमुदं मज्झमज्झेणं पुरत्थाभिमुहे वीइवइउ पत्ते यावि हत्था | सूत्र १३७ : द्रौपदी का यह व्यवहार देख कच्छुल्ल नारद को इस प्रकार का अध्यवसाय व चिन्तित, प्रार्थित तथा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ - “ अहो ! यह द्रौपदी देवी अपने रूप, यौवन और लावण्य पर तथा पाँचों पाण्डवों की विवाहित होने पर अभिमान करने लगी है। इसी कारण यह मेरा आदर, उपासना आदि नहीं करती है। अतः इसका कुछ अनिष्ट करना अच्छा होगा ।" यह विचार आने पर नारद ने राजा पाण्डु से विदा ली और उत्पतनी विद्या का आह्वान कर आकाश मार्ग द्वारा उत्कृष्ट विद्याधर गति से लवणसमुद्र के बीच होते हुए पूर्व दिशा की ओर प्रस्थान कर गये । 137. This behaviour of Draupadi forced Kacchull Narad to consider, worry, wish and think, "Oh! This Draupadi is filled with conceit for her beauty, youth and charm and also for being the wife of the five Pandavs. That is why she does not respect or worship me. As such, I should put her in a messy situation in order to teach her a lesson." He at once took leave of King Pandu and invoking the Utpatini power he proceeded east over the sea with divine speed. अमरकंका में आगमन सूत्र १३८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं धायइसंडे दीवे पुरत्थिमद्धदाहिएद्ध-भरहवास अमरकंका नाम रायहाणी होत्था । तत्थ णं अमरकंकाए रायहाणीए पउमणाभे णामं राया होत्था, महया हिमवंत वण्णओ । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सत्त देवीसयाइं ओरोहे होत्था । तस्स णं पउमणाभस्स रण्णो सुनाभे नामं पुत्ते जुवराया यावि होत्था । तए णं से पउमनाभे राया अंत अंतेउसि ओरोहसंपरिवुडे सिंहासनवरगए विहर | सूत्र १३८ : काल के उस भाग में धातकीखण्ड नामक द्वीप में पूर्व दिशा के दक्षिणार्ध भरतक्षेत्र में अमरकंका नाम की राजधानी थी। वहाँ का राजा पद्मनाभ था जो हिमवन्त पर्वत के समान महान था । उसके अन्तःपुर में सात सौ रानियाँ थीं। उसके पुत्र व युवराज का नाम सुनाभ था। उस समय राजा पद्मनाभ अपने अन्तःपुर में रानियों के साथ सिंहासन पर बैठा था । ARRIVAL IN AMARKANKA 138. During that period of time there was a capital city named Amarkanka in the southern half of the eastern Bharat area in the Dhatkikhand continent. The king there was Padmanaabh who was as illustrious as the Himalayas. He had seven hundred queens. The name of his CHAPTER-16: AMARKANKA Jain Education International For Private Personal Use Only ( 229 ) फ www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445 446 447 448 449 450 451 452 453 454 455 456 457 458 459 460 461 462 463 464 465 466 467