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1 तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक-दईरज्ञात : आमुख ।
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शीर्षक-मंडुक्क-ददुरे-दर्दुर-मेंढक। मेंढक जैसे अल्पायु वाले छोटे से प्राणी के माध्यम से इस कथा में टा सुविधाओं के प्रति आकर्षण और आसक्ति के कारण आत्मिक अधःपतन का कारण स्पष्ट किया है। साथ ही दा र निर्मल हृदय से दिशा परिवर्तन कैसे अल्पकाल में ही कल्याणकारी हो जाता है यह समझाया है। मेंढक का SI 6 उदाहरण होने से इस अध्ययन का नाम ही मंडुक्क दगुरे प्रसिद्ध है। 5 कथासार-श्रमण भगवान महावीर एक बार राजगृह पधारे थे। उस समय दर्दुर नाम के देव ने आकर उनकी र भक्तिपूर्वक दैविक समृद्धि सहित वन्दना/उपासना की थी। तब गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि उस देव को ऐसी ड ए ऋद्धि कैसे प्राप्त हुई?
भगवान ने बताया कि राजगृह नगर में नंद मणियार नाम का एक धनी रहता था। भगवान के पास धर्म र सुनकर वह श्रमणोपासक बन गया था। किन्तु कालान्तर में साधु समागम छूट जाने के कारण वह धीरे-धीरे धर्म र विमुख हो मिथ्यात्वी बन गया। एक बार गर्मी के मौसम में वह पौषधशाला में तेले का व्रत कर रहा था। उस 15 समय प्यास से पीड़ित होने के कारण उसके मन में एक सुन्दर मनोहर बावडी बनवाने का संकल्प उठा। व्रत
समाप्त होने पर वह राजा श्रेणिक के पास गया और उनसे आज्ञा प्राप्त कर नगर के बाहर एक उचित स्थान पर द
एक सुन्दर बावडी बनवाई और उसके चारों ओर विविध सुविधाओं सहित चार उद्यान भी बनवाए। इन सुविधाओं एका आनन्द लेते अनेक नागरिक नंद की प्रशंसा करते और वह आनन्दित होता। 5 एक बार नंद को महारोगों ने घेर लिया। अनेक उपचारों के बाद भी वह स्वस्थ नहीं हो सका और अन्त में टा र उस बावडी में आसक्ति लिए मृत्यु को प्राप्त हुआ। मृत्यु के बाद वह उसी बावडी में मेंढक के रूप में उत्पन्न हुआ। र वहाँ स्नान करते नागरिकों के मुँह से नंद मणियार की प्रशंसा सुनते-सुनते उसे लगा कि ये बातें उसने पहले भीड 5 कभी सुनी हैं। एकाग्र होने पर उसे जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हो आया और पूर्व जन्म की सभी बातें याद आ गईं। 5 उसे अहसास हुआ कि धर्म से विमुख हो जाने के कारण उसकी यह दशा हुई है। उसने तत्काल अपनी स्मृति के ट रे अनुरूप धर्म ग्रहण कर लिया और साथ ही बेले-बेले के तप का व्रत भी ले लिया। र उसी समय भगवान महावीर का राजगृह में पुनरागमन हुआ। यह समाचार लोगों की चर्चा से जान नंद मेंढक 5 भी भगवान के दर्शन करने के लिए बावडी से निकल राजमार्ग पर आ गया। वहाँ राजा श्रेणिक भी अपने ट २ प्रतिहारों सहित भगवान के दर्शन हेतु जा रहे थे। तभी नंद मेंढक पर एक घोड़े की टाप पड़ी और उसकी आँते ड र निकल आईं। अन्त समय निकट जान वह धीरे-धीरे एक ओर घिसट गया और वहीं भक्तिपूर्वक प्रभु का स्मरण
करने लगा। अंत समय में शुद्ध भावनाओं के कारण वह सौधर्म देवलोक में ऋद्धि सम्पन्न दर्दुर देव के रूप में 5 उत्पन्न हुआ। वहाँ से वह महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगा।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA
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