Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 265
________________ र ( २०२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा. 15 सूत्र ७३ : अन्य साध्वियों की इस अवहेलना एवं अनादर आदि के कारण सुकुमालिका के मन ट र में विचार उठा-"जब मैं गृहस्थवास में थी तब मैं स्वाधीन थी। मुण्डित हो दीक्षा ले लेने के बाद मैं ड र पराधीन हो गई। पहले ये साध्वियाँ मेरा आदर करती थीं पर अब नहीं करती। अतः अच्छा होगा। 15 कि मैं कल प्रातःकाल होने पर आर्या गोपालिका के पास से निकल कर अलग उपाश्रय पर जाकर टा र रहने लगें ।' उसने यही निश्चय किया और भोर होने पर वहाँ से निकलकर अन्य उपाश्रय ड र (स्थान) पर जाकर रहने लगी। 2 SEPARATION FROM THE GROUP 73. This disregard and disdain by other Sadhyis forced Sukumalika to think, "When I was a house-holder I had my frecdom. Since I got my head shaved and initiated I have lost my freedom. Earlier these Sadhvis used to * respect me but not now. So it would be good for me to leave this group, led by Ç Arya Gopalika, tomorrow and live in another abode.” She resolved to do accordingly and the first thing she did in the morning was to shift to another suitable abode. __ सूत्र ७४ : तए णं सा सूमालिया अज्जा अणोहट्टिया अनिवारिया सच्छंदमई अभिक्खणं डा र अभिक्खणं हत्थे धोवेइ, जाव चेएइ, तत्थ वि य णं पासत्था, पासत्थविहारी, ओसण्णा में 15 ओसण्णविहारी, कुसीला कुसीलविहारी संसत्ता, संसत्तविहारी बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं दी पाउणइ, अद्धमासियाए संलेहणाए तस्स ठाणस्स अणालोइय-अपडिक्वंता कालमासे कालं किच्चा डा 15 ईसाणे कप्पे अण्णयरंसि विमाणंसि देवगणियत्ताए उववण्णा। तत्थेगइयाणं देवीणं नव ट 5 पलिओवमाइं ठिई पण्णत्ता, तत्थ णं सूमालियाए देवीए नव पलिओवमाइं ठिई पन्नत्ता। सूत्र ७४ : अन्य उपाश्रय में जाकर अकेले रहने पर उसे कोई रोकने-टोकने वाला नहीं रहाट 15 और सुकुमालिका स्वच्छंद हो शरीर संस्कारों के प्रति आसक्ति पूर्ण जीवन बिताने लगी। यही नहीं, डा र वह शिथिल आचार वर्तने के कारण शिथिलाचारिणी हो गई। नियम पालन में आलस करने से ड र आलसी हो गई। अनाचार में लिप्त होने से कुशीला हो गई। उपलब्ध साता-सुखों के प्रति आसक्त ट] 15 होने से संसक्ता हो गई। इस प्रकार उसने अनेक वर्षों तक साध्वी रूप में जीवन व्यतीत किया। ट र अन्त में अर्धमास (१५ दिन) की संलेखना कर, अपने अनुचित आचरण की आलोचना और ड र प्रतिक्रमण किए बिना ही शरीर त्याग कर ईशानकल्प में देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। वहाँ कुछ ही 15 देवियों की आयु नौ पल्योपम बताई है। सुकुमालिका देवी की आयु भी नौ पल्योपम हुई। 74. Living alone Sukumalika was free of any curbs and restraints. She S became unrestrained in her excessive indulgence in the care of her body. Not I only this, due to her slipshod ways she also became lax in her ascetic a conduct. Due to her indulgence in base activities she lost her grace. Her fondness for mundane physical pleasures made her overindulgent. In this E (202) JNĀTĀ DHARMA KATHÄNGA SŪTRA 2 HinAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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