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माज र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( २०७ ) 5 83. The messenger joined his palms and with due greetings and humility दा
accepted the order. He went home, called his servants and ordered, “Beloved Rof gods! go and bring a four-bell chariot after yoking horses to it.” The S 2 servants produced the chariot as told. 15 सूत्र ८४ : तए णं से दूए ण्हाए जाव अलंकारविभूसियसरीरे चाउग्घंटं आसरहं दुरुहइ, र दुरुहित्ता गहियाऽऽउह-पहरणेहिं सद्धिं संपरिवुडे कंपिल्लपुरं नयरं मझमझेणं निग्गच्छइ, ड र निग्गच्छित्ता पंचालजणवयस्स मझमझेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता 15 सुरट्ठाजणवयस्स मझमझेणं जेणेव वारवई नयरी तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वारवइंड
र नगरिं मझमज्झेणं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता जेणेव कण्हस्स वासुदेवस्स बाहिरिया । 15 उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता चाउग्घंट आसरहं ठवेइ, ठवित्ता रहाओ द
पच्चोरुहइ, पच्चोरुहित्ता मणुस्सवग्गुरापरिक्खित्ते पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव ड र उवागच्छइ उवागच्छित्ता कण्हं वासुदेवं समुद्दविजयपामुक्खे य दस दसारे जाव बलवगसाहस्सीओट 5 करयल तं चेव जाव समोसरह।
__ सूत्र ८४ : दूत ने स्नानादि कर वस्त्राभूषण पहने, चार घण्टा वाले रथ पर चढ़ा और ट 5 अस्त्र शस्त्रधारी अनेक रक्षकों के साथ काम्पिल्यपुर नगर के बीच से निकल पाँचाल देश को पार दी 5 करता हुआ सीमा पर पहुंचा। फिर सुराष्ट्र जनपद के बीच होता हुआ द्वारका नगरी की दिशा में ड र चला। द्वारका नगरी में प्रवेश कर कृष्ण वासुदेव की बाहरी राज्य सभा के निकट आकर रथ को है E रोका। रथ से नीचे उतर अपने रक्षकों से घिरा पैदल चलता हुआ वह कृष्ण वासुदेव के पास पहुँचा। दा 15 वहाँ पहुँच कर उसने कृष्ण वासुदेव समुद्रविजय, एवं दश-दशार आदि सभी उपस्थित सज्जनों का ड
र यथा विधि अभिवादन किया और स्वयंवर में पहुचने हेतु राजा द्रुपद का निमन्त्रण कह सुनाया। 15 84. The emissary got ready after taking his bath and dressing up and rodec 5 the four-bell chariot. Taking along a large contingent of soldiers he moved
through the streets of Kampilyapur city and crossing the Panchal state arrived at the border. After this he crossed the Surashtra state and entered 2 the city of Dwarka. He stopped his contingent at the gate of the outer assembly of Krishna Vasudev. He got down from the chariot and, surrounded
by his guards, walked to Krishna Vasudev. Observing the protocol he greeted K Krishna Vasudev, ten Dashars including Samudravijava, and 15 dignitaries and conveyed the invitation to Svayamvar sent by King Drupad. र सूत्र ८५ : तए णं से कण्हे वासुदेवे तस्स दूयस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हट्ठ जावट 5 हियए तं दूयं सक्कारेइ, सम्माणेइ, सक्कारिता सम्माणित्ता पडिविसज्जेइ।' र सूत्र ८५ : कृष्ण वासुदेव उस दूत से समाचार सुनकर प्रसन्न व सन्तुष्ट हुए। फिर दूत का 2 5 यथोचित सत्कार-सम्मान किया और तब उसे वापस विदा कर दिया। IS CHAPTER-16 : AMARKANKA
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