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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
आदि इक्कीस हजार वीर पुरुष, महासेन आदि छप्पन हजार बलवान तथा अन्य अनेक राजा, युवराज, तलवर, माण्डविक, कौटुम्बिक, इभ्य, श्रेष्ठि, सेनापति और सार्थवाह आदि। इनसे भेंट करके यथाविधि नमस्कार करना, 'जय-विजय हो' कहकर अभिनन्दन करना और कहना
THE SVAYAMVAR
81. King Drupad called one of his emissaries and said, “Beloved of gods ! Go to Dwarka city and meet all the prominent people there. These important people are Krishna Vasudev, the ten Dashar kings led by Samudravijaya, five great warriors led by Baldev, sixteen thousand kings led by Ugrasen, thirty five million princes led by Pradyumna, sixty thousand fiery warriors led by Shamb, twenty one thousand great achievers led by Virsen, fifty six thousand great warriors led by Mahasen, and many other kings, princes, etc. (as in Ch. 1 para 19 ). Once you meet them, greet them extending due courtesy and uttering, “Be you victorious !” and convey the following message -
सूत्र ८२ : एवं खलु देवाणुप्पिया ! कंपिल्लपुरे नयरे दुवयस्स रण्णो धूयाए चुलणीए देवीए अत्तयाए धट्टजुण्ण-कुमारस्स भगिणीए दोवईए रायवर - कण्णाए सयंवरे भविस्सइ, तं णं तुभे देवापिया ! दुवयं रायं अणुगिरहेमाणा अकालपरिहीणं चेव कंपिल्लपुरे नयरे समोसरह ।'
सूत्र ८२ : "हे देवानुप्रियो ! काम्पिल्यपुर नगर में द्रुपद राजा की पुत्री, चुलनी देवी की आत्मजा और कुमार धृष्टद्युम्न की बहन श्रेष्ठ राजकुमारी द्रौपदी का स्वयंवर होने वाला है। अतः आप सब राजा द्रुपद पर अनुग्रह करते हुए निर्विलम्ब काम्पिल्यपुर पधारें ।"
82. Beloved of gods! The Svayamvar (bride-groom choosing) for the illustrious princess Draupadi, the daughter of King Drupad and queen Chulni, and the sister of prince Dhrishtadyumn, is being organized in Kampilyapur city. You all are cordially invited to grace the occasion and oblige King Drupad. Kindly proceed for Kampilyapur city without any delay.”
सूत्र ८३ : तए णं से दूए करयल जाव कट्टु दुवयस्स रण्णो एयमहं विणएणं पडिसुणेइ, पडिणित्ता जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता कोडुंबियपुरिसे सहावेइ, सद्दावित्ता एवं वयासी - 'खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! चाउग्घंटं आसरहं जुत्तामेव उबट्ठवेह |' जाव ते वि तहेव उवट्टवेंति ।
सूत्र ८३ : दूत ने हाथ जोड़ यथाविधि नमस्कार कर राजा की आज्ञा विनयपूर्वक स्वीकार की और अपने घर लौटकर सेवकों से कहा- “देवानुप्रियो ! शीघ्र ही चार घण्टाओं वाला अश्वरथ जात कर ले आओ।" सेवकों ने रथ उपस्थित किया।
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JNĀTA DHARMA KATHANGA SŪTRA
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