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फज्ज्ज्ज्ज
सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
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sprinkled with good fragrant water. Decorate it with enchanting, fragrant and multicoloured flowers. Burn a variety of incenses including KrishnaAgar, best Kunduruk and Turushk to make it redolent and pleasant like a chamber of perfumes. Erect platforms inside it and install chairs with white covers and bearing names of Krishna Vasudev and thousands of other kings. After making all these arrangements report back to me." The servants did as told and reported back.
अतिथि सत्कार
सूत्र १११ : तए णं वासदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा कल्लं पाउप्पभायाए पहाया जाव विभूसिया हथखंधवरगया सकोरंट मल्ल दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं सेयवरचामराहिं हय-गज जाव परिवुडा सव्विड्डीए जाव रवेणं जेणेव सयंवरे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता अणुपविसंति, अणुपविसित्ता पत्तेयं पत्तेयं नामंकिएसु आसणेसु निसीयंति, दोवई रायवरकण्णं पडवालेमाणा चिट्ठति ।
सूत्र १११ : दूसरे दिन प्रातः काल वासुदेव आदि हजारों राजा स्नानादि से निवृत्त हो तैयार होकर हाथियों पर सवार हो फूलों की माला व छत्र धारण किये अपने पूर्ण वैभव सहित सैन्य-सज्जा तथा गाजे-बाजे के साथ स्वयंवर मण्डप में पहुँचे मण्डप में प्रवेश कर अपना-अपना स्थान ग्रहण किया और राजकुमारी द्रौपदी की प्रतीक्षा करने लगे ।
GREETING THE GUESTS
111. Next morning Krishna Vasudev and the other kings got ready after bathing and dressing up and came to the Svayamvar pavilion riding elephants with canopies made up of garlands of Korant flowers, plying exquisite white whisks, and surrounded by armies, with all their regalia and pomp and show. After arriving, they took their allotted seats and waited for the arrival of the princess.
सूत्र ११२ : तए णं से दुवए राया कल्लं पहाए जाव विभूसिए हथिखंधवर गए सकोरंटमल्लदामेणं हय-गय-रह-पवरजोहकलियाए चाउरंगिणीए सेणाए सद्धिं संपरिवुडे महया ( भडचडकर-रह-परिकरविंदपरिक्खित्ते कंपिल्लपुरं मज्झमज्झेणं निग्गच्छ, निग्गच्छित्ता जेणेव सयंवरमंडवे, जेणेव वासुदेवपामोक्खा बहवे रायसहस्सा, तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेसिं वासुदेवपामुक्खाणं करयल जाव बद्धावेत्ता कण्हस्स वासुदेवस्स सेयवरचामरं गहाय उववीयमाणे उववीयमाणे चिट्ठ |
सूत्र ११२ : प्रातःकाल राजा द्रुपद भी तैयार हो वैसी ही सैन्य-सज्जा व वैभव सहित हाथी पर बैठकर चतुरंगिणी सेना के साथ (सू. १०९ ) कांपिल्यपुर से निकल कर स्वयंवर मण्डप में आया ।
CHAPTER - 16 : AMARKANKA
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