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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र 5 CONSTRUCTION OF THE POOL
12. Nand Manikaar was pleased and contented to get permission from the king. Passing through the city he went to the location selected by the architects and launched the project.
With passage of time the large pool that was named Nand took a square shape. A boundary wall was erected around it. It was filled with cool water. The water surface got covered with leaves, creepers and plankton. Numerous species of lotus and their pollen enhanced its beauty; some of the species being-Utpal, Kamal, Padma, Kumud, Nalini, Subhag, Saugandhik, , Pundareek, Mahapundareek, Shatpatra, and Sahasrapatra. It was filled with echoes of loud but appealing sounds of Parihatth (a marine animal), flying bumble-bees, and a variety of birds. That pool became enchanting, pleasant,
exquisite, and ideal for all. र सूत्र १३ : तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी णंदाए पोक्खरिणीए चउद्दिसिं चत्तारि वणसंडं र रोवावेइ। तए णं ते वणसंडा अणुपुव्वेणं सारक्खिज्जमाणा य संगोविज्जमाणा य संवड्डियमाणा य । र वणसंडा जाया-किण्हा जाव निकुरंबभूया पत्तिया पुफिया जाव उवसोभेमाणा उवसोभेमाणा 15 चिट्ठति।
र सूत्र १३ : नन्द मणिकार ने इसके बाद नंदा पुष्करिणी के चारों ओर चार वनखण्ड (बगीचे) टी 15 लगवाये। उनकी भली प्रकार सुरक्षा, सँभाल तथा संवृद्धि के प्रबन्ध करने से वे वनखण्ड सघन हो डी
र गये। वे पत्तों, फूलों आदि से अत्यन्त शोभायमान हो गये। 15 13. Once this was done Nand Manikaar planted four gardens on all the c 15 four sides of the Nanda pool. With adequate protection, care, and nurturing, डा 5 these gardens became lush green. With abundant foliage, flowers, etc. they SI
became very beautiful. 15 चित्र-सभा 15 सूत्र १४ : तए णं ते मणियारसेट्टी पुरच्छिमिल्ले वणसंडे एगं महं चित्तसभं कारावेइ, द
र अणेगखंभसयसंनिविट्ठ पासादीयं अभिरूवं पडिरूवं। तत्थ णं बहूणि किण्हाणि य जावट र सुकिल्लाणि य कट्टकम्माणि य पोत्थकम्माणि य चित्तकम्माणि य लिप्पकम्माणि यट 15 गंथिम-वेढिम-पूरिम-संघाइमाइं उवदंसिज्जमाणाइं उवदंसिज्जमाणाई चिट्ठति।
5 सूत्र १४ : नन्द मणिकार ने पूर्व दिशा वाले वनखण्ड में एक विशाल चित्रसभा बनवाई। उसमें दी 15 सैंकड़ों खम्भे थे और वह प्रसन्नतादायक, दर्शनीय आदि (सू.१२ के समान) थी। उसमें अनेक कृष्ण, ड 12 नील, रक्त, शुक्ल आदि रंगों से पुती-काठ की सजावट, वस्त्रों की सजावट, चित्रों की सजावट, टे
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