Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र दा
परिशिष्ट
PATIPATION:
अहच्छित्रा नगर-इस प्राचीन नगर का उल्लेख तो कई ग्रन्थों में है किन्तु आज की स्थिति स्पष्ट नहीं हो पाई। है। जैनयात्रियों के अनुसार आगरा से ईशानकोण में स्थित कुरुजांगल प्रदेश में स्थित है यह नगर। अन्य यात्री इसे 5, मेवात क्षेत्र में बताते हैं। जिनप्रभसूरि के तीर्थकल्प के अनुसार यह कुरुजांगल प्रदेश की प्राचीन शंखावली नामक ट
नगरी थी जो भगवान पार्श्वनाथ के कमठ उपसर्ग के पश्चात् अहिच्छत्रा नाम से प्रसिद्ध हो गई। ह्युएनत्सेंग के र यात्रा वर्णनों में भी इसकी चर्चा है। महाभारत में भी इसका उल्लेख है। हेमचंद्रसूरि ने इसका अन्य नाम प्रत्यग्रथ र बताया है। 5 चरक-एक प्रकार के त्रिदण्डी परिव्राजक जो कछोटा (कच्छा या लंगोट) पहनते थे तथा यूथ बंध (समूह रूप) र रहते थे। ये खाद्य वस्तुओं का प्रथम भाग भिक्षा में लेते थे।
चीरिक-रास्ते में पड़े कपड़े (चिथड़े) उठाकर पहनने वाले एक प्रकार के संन्यासी। चर्मखंडिक-चमड़े के वस्त्र तथा उपकरण उपयोग में लाने वाले संन्यासी। भिक्षाण्ड-केवल भिक्षा से निर्वाह करने वाले। अन्यों द्वारा लाई भिक्षा पर निर्वाह करने वाले। बौद्ध भिक्षु।
पाण्डुरंग-शिव-भक्त; शरीर पर भभूत लपेटने वाले संन्यासी; गोशालक के अनुयायी साधु (निशीथ चूर्णि); S द गाय के दही, दूध, घी आदि को मांस समझकर ये नहीं खाते थे। (उद्योतनसूरि)। 5 गौतम-बैल के साथ उसकी क्रीड़ा दिखाकर भिक्षा ग्रहण करने वाले।
__गोव्रती-गाय की सेवा करते हुए उसके अनुरूप कार्य करने का व्रत रखने वाले अर्थात् जब गाय बैठे तो वे बैठें, जब गाय खावे तो वे खावें आदि। गौचर्यानुगामी।
गृहिधर्मी-गृहस्थ धर्म को ही सर्वश्रेष्ठ मानने वाले तथा सदा वैसा ही चिन्तन करने वाले।
अविरुद्ध-विनयवादी, प्राणिमात्र का विनय करने वाले। र विरुद्ध-अक्रियावादी, ये परलोक नहीं मानते तथा सभी मतों का खण्डन करते हैं।
वृद्ध-वृद्धावस्था में संन्यास लेने वाले; ऋषभदेव के समय के वे श्रावक जो कालान्तर में ब्राह्मण हो गए। वेट F पुरातन होने के कारण आदिलिंगी अथवा वृद्ध कहे जाते थे।
श्रावक-धर्मशास्त्र सुनने वाले ब्राह्मण रक्तपट-लाल वस्त्रधारी परिव्राजक।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2
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