Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 260
________________ 卐ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण्ण र सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका ( १९७ ) टा 5 marital enjoyments are beyond expectation. Whoever married me did not s 5 love or adore me. Aryas! You are learned, experienced and scholarly please S do some thing so that I may gain favour and love of Sagar (details as ch. 14 para 25)." दीक्षा-ग्रहण 5 सूत्र ६३ : अज्जाओ तहेव भणंति, तहेव साविया जाया, तहेव चिंता, तहेव सागरदत्तं द र सत्थवाहं आपुच्छइ, जाव गोवालियाणं अंतिए पव्वइया। तए णं सा सूमालिया अज्जा जाया र ईरियासमिया जाव बंभयारिणी बहूहिं चउत्थछट्टट्ठम जाव विहरइ। 15 सूत्र ६३ : आर्याओं ने सुव्रता आर्या की तरह कहा-ऐसी बात तो हमें सुनना भी नहीं कल्पता, ड र उपदेश देने की तो बात ही दूर रही। फिर उसे धर्म का उपदेश दिया जिसे सुनकर वह श्रविका बन ट 5 गई। फिर उसे दीक्षा लेने का विचार आया। तब वह सुकुमालिका अपने पिता से आज्ञा ले डा 15 गोपालिका आर्या के पास दीक्षित हो गई और संयम, नियम, ब्रह्मचर्य युक्त एवं उपवास बेला-तेला SI र आदि तपस्यामय जीवन बिताने लगी? (विस्तृत विवरण पूर्व-अ. १४ सू.२६-२९ के समान) K DIKSHA 63. The Sadhvis closed their ears and replied as Arya Suvrata had replied S 5 to Pottila, “Beloved of gods! It is sinful for us even to hear such talk. How can S 2 we preach on the subject?" And the Sadhvis gave a discourse on their unique religion. On listening the discourse Pottila became a Shramanopasika. Later 5 she decided to become a Sadhvi. She took permission from her father and got initiated. She started doing harsh penance including fasting for two, three, or < 5 more days and following the codes of conduct leading a disciplined ascetic 5 life. (details as Ch. 14 para 26-29). र सूत्र ६४ : तए णं सा सूमालिया अज्जा अन्नया कयाइ जेणेव गोवालियाओ अज्जाओ तेणेव ट 5 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी--‘इच्छामि णं अज्जाओ ! S र तुब्भेहिं अब्भणुन्नाया समाणी चंपाओ बहिं सुभूमिभागस्स उज्जाणस्स अदूरसामंते छटुंछट्टेणं टा 15 अणिक्खित्तेणं तवोकम्मेणं सूराभिमुही आयावेमाणी विहरित्तए।' र सूत्र ६४ : किसी समय एक बार आर्या सुकुमालिका अपनी गुरुणी गोपालिका आर्या के पास टा 5 गई और यथा-विधि वन्दना करके बोली-“हे आर्या ! मैं आपकी आज्ञा लेकर चम्पानगरी के बाहर 15 सुभूमिभाग उद्यान के निकट बेले बेले का निरन्तर तप करते हुए सूर्य के सामने आतापना लेना डा र चाहती हूँ।" 15 64. Later one day ascetic Sukumalika went to her preceptor and after due SI 5 obeisance said, "Arya! If you would permit me I would like to go to the S 115 CHAPTER-16 : AMARKANKA (197) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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