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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा ___ सूत्र २४ : तब ब्राह्मण सोम, सोमदत्त तथा सोमभूति अनेक चम्पावासियों के मुख से यह दी 15 समाचार सुन-समझकर कुपित हुए, रुष्ट हुए और क्रोध से जल उठे। वे नागश्री के पास गए और डा र बोले-“ अरी नागश्री ! अवांछित की वांछा करने वाली, दुष्ट और अशुभ लक्षणों वाली। अशुभ कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को जन्मी हुई। अधन्य, अपुण्य, भाग्यहीन, अभागिनी। अत्यन्त दुर्भागिनी टा
और निंबोली के समान कटु, तुझे धिक्कार है कि तूने एक श्रेष्ठ साधु रूप श्रमण को मासखमण के दी र पारणे में विषैला साग बहराकर मार डाला।'
____ इस प्रकार उन ब्राह्मणों ने ऊँचे-नीचे आक्रोश-वचन कहकर आक्रोश प्रकट किया, ऊँचे-नीचे डा र अपमान-जनक वचन कहकर उसे अपमानित किया, ऊँचे-नीचे भर्त्सना-वचन कहकर भर्त्सना की,
और ऊँचे-नीचे तिरस्कार वचन कहकर उसका तिरस्कार किया और अन्त में उसकी तर्जना और ट 15 ताड़ना कर अपने घर से निकाल दिया। 5 THE PLIGHT OF NAAGSHRI
24. Brahmans Som, Somdatt, and Sombhuti also heard all this from many citizens of Champa. They became very angry. They went to Naagshri and said, “O deplorable Naagshri! O desirous of the undesired! You are infested with the evil and ominous signs like the one born on the fourteenth night of
the dark half of the month. Curse you, O worthless, virtueless, (etc.) डा » Naagshri; you are as hateful as the bitter margosa-berry. For you gave the 9 2 bitter and toxic gourd curry to such a noble soul as ascetic Dharmaruchi for 3 breaking his month long fast and caused his untimely death."
Those Brahmans expressed their anger by uttering angry words in low > and high pitched voice. In the same manner they insulted, deplored, and 2 rejected her. And at last cursing and shouting they kicked her out of their 9
house. 15 सूत्र २५ : तए णं सा नागसिरी सयाओ गिहाओ निच्छूढा समाणी चंपाए नयरीए सिंघाडग-डा
र तियचउक्क-चच्चर-चउम्मुह-महापह-पहेसु बहुजणेणं हीलिज्जमाणी खिंसिज्जमाणी निंदिज्जमाणी टा 5 गरहिज्जमाणी तज्जिज्जमाणी पव्वहिज्जमाणी धिक्कारिज्जमाणी थुक्कारिज्जमाणी कत्थइ ठाणं वा ड र निलयं वा अलभमाणी दंडी-खंडनिवसना खंडमल्लग-खंडघडग-हत्थगया फुट्ट-हडाहड-सीसा डा ए मच्छियाचडगरेणं अन्निज्जमाणमग्गा गेहं गेहेणं देह-बलियाए वित्तिं कप्पेमाणी विहरइ। र सूत्र २५. अपने घर से निकाली हुई वह नागश्री चम्पानगरी के शृंगाटक, तिराहे, चौक, चबूतरे, SI र चौराहे, महापथ आदि स्थानों से निकली तो सभी स्थानों पर अनेक जनों ने उसकी अवहेलना की, टा 5 बुराई की, निंदा की, गर्दा की, तर्जना की, व्यथा पहुँचाई, धिक्कारा और थूका। यहाँ तक कि वह न डा र तो कहीं ठहरने का ठिकाना पा सकी और न रहने का स्थान। अंततः टुकड़े-टुकड़े सांधे हुए वस्त्र ) र (178)
JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 3 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnni
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