Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
View full book text
________________
5 सोलहवाँ अध्ययन : अमरकंका
( १६३ ) अन्ततः वह चम्पानगरी में ही सागरदत्त नाम के वणिक के घर सुकुमालिका के रूप में जन्मी। उसका विवाह सागर नाम के श्रेष्ठि पुत्र से हुआ। किन्तु उसके शरीर का स्पर्श ही अग्नि ज्वाला जैसा दुःखदायी होने के कारण वह उसे छोड़ भागा। उसके पिता ने एक भिखारी से उसका पुनर्विवाह कर दिया। भिखारी भी उसका स्पर्श नहीं कर सका और वह भी उसे छोड़ भागा। फिर उसने दीक्षा ले ली और उग्र तपस्या करने लगी। पर उसके मन की वासना ज्यों की त्यों बनी रही। एक बार गुरु आज्ञा के विरुद्ध वह उद्यान में तपस्यारत थी। तब एक गणिका को पाँच व्यक्तियों के साथ भोग विलास करते देख उसके मन में संकल्प उठा कि इस तपस्या का कोई फल होता हो तो उसे भी इसी प्रकार भोग विलास का आनन्द मिले। इस प्रकार निदान कर लिया। उसकी साधना में धीरे-धीरे शिथिलता बढ़ने लगी। अन्ततः मृत्यु प्राप्त कर वह पांचाल नरेश द्रुपद की पुत्री द्रौपदी के रूप में जन्मी।
द्रौपदी युवा हुई तो उसके पिता ने स्वयंवर रचा, जहाँ देश के सभी शूरवीर राजाओं को बुलाया गया। द्रौपदी ने पाँच पाण्डवों को एक स्थान पर बैठे देख पूर्वजन्म के संकल्प से प्रेरित हो उन पाँचों का वरण कर लिया। हस्तिनापुर में राजा पाण्डु के महल में एक बार नारद मुनि का आगमन हुआ। द्रौपदी ने नारद को असंयत मानकर उनका आदर सत्कार नहीं किया। नारद ने क्षुब्ध हो धातकीखंड में अमरकंका नगरी के राजा पद्मनाभ को उकसाया। पद्मनाभ ने अपने एक मित्र देव की सहायता से द्रौपदी का अपहरण करवा लिया। द्रौपदी वहाँ राजा से अपने छुटकारे की अपेक्षा में छह मास का समय माँग तपस्यारत हो गई। ___ इधर पाण्डु राजा को द्रौपदी की कोई खोज नहीं मिली तो उन्होंने कृष्ण वासुदेव से सहायता माँगी। कृष्ण वासुदेव पाण्डवों सहित अमरकंका पहुंचे और पद्मनाभ को ललकारा। युद्ध हुआ और पाण्डव पराजित हो गए। फिर कृष्ण ने अपनी शक्ति से पद्मनाभ को हरा दिया और द्रौपदी को छुड़ाकर पाण्डवों को सौंप दिया।
लौटते समय पाण्डवों ने कृष्ण की शक्ति परीक्षा लेने के हेतु गंगा नदी पार कर नाव छुपा दी। कृष्ण ने अपने रथ को हाथ में उठा तैरकर नदी पार की। उन्हें जब यह ज्ञात हुआ कि यह कार्य पाण्डवों ने उनकी शक्ति की परीक्षा हेतु किया था तो उन्होंने क्रुद्ध हो पाण्डवों को देश निकाला दे दिया।
पाण्डु राजा को यह पता चला तो उन्होंने कुन्ती को कृष्ण के पास भेजा। तब कृष्ण ने कहा कि दक्षिण समुद्र के तट पर पाण्डव एक नया नगर-पाण्डु-मथुरा बसाकर रह सकते हैं। पाण्डव वहाँ रहने लगे। कालान्तर में उन्होंने द्रौपदी सहित दीक्षा ले ली और शत्रुजय पर्वत पर जा कर मोक्ष प्राप्त किया। द्रौपदी ने भी स्वाध्याय व तपस्या द्वारा कर्मों को क्षीण किया और मरकर देवलोक में जन्मी। वहाँ से महाविदेह में जन्म लेकर मोक्ष प्राप्त करेगी।
UUVVurvuruvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvvv
K CHAPTER-16 : AMARKANKA
(163) दा EAnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnAAAAAAAAAA
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org