Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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जजजज 5 (९०)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 15 तए णं णंदस्स अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि तण्हाए छुहाए य अभिभूयस्स समाणस्स दे
र इमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पज्जित्था-'धन्ना णं ते जाव ईसरपभियओ जेसिं णं रायगिहस्स र बहिया बहूओ वावीओ पोक्खरणीओ जाव सरसरपंतियाओ जत्थ णं बहुजणो ण्हाइ य पियइ य 15 पाणियं च संवहति। तं सेयं खलु ममं कल्लं पाउप्पभायाए सेणियं रायं आपुच्छित्ता रायगिहस्सS
नयरस्स बहिया उत्तरपुरच्छिमे दिसीभाए वेभारपव्वयस्स अदूरसामंते वत्थुपाढगरोइयंसि 15 भूमिभागसि नंदं पोक्खरिणिं खणावेत्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ।
र सूत्र १० : एक बार गर्मी के मौसम में ज्येष्ठ महीने में नन्द मणिकार सेठ ने अष्टम भक्त-तेले 15 का तप किया और पौषधशाला में जाकर नियमपूर्वक रहा। 15 जब तीन दिन के उपवास का तप पूर्ण होने को था तब भूख और प्यास की पीड़ा से क्षुब्ध ८ 15 उसके मन में विचार उठा-“वे राजकुमार, श्रेष्ठी आदि धन्य हैं जिनके पास राजगृह नगर के
र बाहर अनेक बावड़ियाँ, पुष्करणियाँ, सरोवरों की पंक्तियाँ आदि हैं, जिनमें अनेक लोग स्नान करते टा 15 हैं, जल पीते हैं और जल भरकर ले जाते हैं। मैं भी कल प्रातःकाल श्रेणिक राजा की आज्ञा लेकर डा र राजगृह नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में वैभार पर्वत के निकट वास्तु शास्त्र के जानकारों की र सम्मति के अनुसार नंदा पुष्करिणी खुदवाऊँ तो अच्छा होगा।" 15 NAND'S WISH
10. Once during the month of Jyeshth in the summer season Nand Manikaar observed a three day fast as part of a penance and went to live as a partial ascetic in the Paushadh Shala (abode meant for ascetics).
On the third day when the practice was in its last lap he was tormented 2 by thirst and hunger and thought, “Blessed are those princes, merchants, 15 and others who own many ponds, pools, streams and other such places where 15 people take their bath, drink water, and collect water to take home. It would S be commendable for me if tomorrow morning I also seek permission from
ng Shrenik and dig a lake in the north eastern direction of Rajagriha near 15 the Vibhargiri mountain under the guidance of able architects."
र सूत्र ११ : एवं संपेहित्ता कल्लं पाउप्पभायाए जाव पोसहं पारेइ, पारित्ता बहाए कयबलिकम्मेड र मित्तणाइ जाव संपरिवुड़े महत्थं जाव पाहुडं गेण्हइ, गेण्हित्ता जेणेव सेणिए राया तेणेवट 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता जाव पाहुडं उवठ्ठवेइ, उवट्ठवित्ता एवं वयासी-'इच्छामि णं सामी ! डा र तुब्भेहिं अब्भणुनाए समाणे रायगिहस्स बहिया जाव खणावेत्तए।' र 'अहासुहं देवाणुप्पिया।'
र (90)
JNÄTI DHARMA KATHANGA SUTRA Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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