Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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चौदहवाँ अध्ययन : तेतलिपुत्र : आमुख
शीर्षक-तेयली-तेतली नाम विशेष। सद्गुण होने पर भी सुख-सुविधाएँ मनुष्य को लुभाए रखती हैं और वह द 15 आत्मोत्थान की राह पर अग्रसर होने का मानस नहीं बना पाता। भव्यात्मा में यह आवरण बड़ा झीना होता है और डा 15 दुःख की मार उसे तोड़ कर उसका मार्ग प्रशस्त कर देती है। पूर्वोपार्जित सत्कर्म इस दिशा परिवर्तन के निमित्ता र बनते हैं। तेतली पुत्र अमात्य की यह रोचक कथा इस दिशा परिवर्तन को प्रभावी रूप से प्रकट करती है। 5 कथासार-तेतलीपुर नगर में राजा कनकरथ का राज्य था। तेतलिपुत्र उनके अमात्य थे। राजा कनकरथ की दा 15 अपने राज्यादि पर इतनी आसक्ति थी कि वह अपने पुत्रों के जन्म लेते ही उनके अंग-भंग कर देता था जिससे वेडा २ राज-सिंहासन के योग्य न हो सकें। रानी पद्मावती ने इस बात से चिन्तित हो अमात्य तेतलीपुत्र से मिलकर योजना P बनाई। तेतलीपत्र की पत्नी थी पोट्टिला। एक बार राजा और अमात्य पलियाँ दोनों ने एक साथ प्रसव किया। रानी दा
के पुत्र हुआ और पोट्टिला के मृत पुत्री। अमात्य ने पूर्व योजनानुसार गुप्त रूप से रानी के पुत्र को अपनी मृत पुत्री ट 5 से बदल दिया और राजकुमार का लालन-पालन करने लगा। र कुछ समय बाद तेतली पुत्र का अपनी पत्नी के प्रति प्रेम समाप्त हो गया। पोट्टिला श्रमणियों के संसर्ग में आई । 2 और उसे वैराग्य हो आया। जब उसने तेतलीपुत्र से आज्ञा माँगी तो उसने इस शर्त पर आज्ञा दी कि अपनीट र तपस्या के फलस्वरूप पोट्टिला देवयोनि में उत्पन्न हो तो वहाँ से आकर उसे सद्धर्म का प्रतिबोध दे। पोट्टिला ने ट 15 दीक्षा ली और दीर्घ तपस्या के बाद देह त्याग देव रूप में जन्मी। २ इधर कनकरथ राजा की मृत्यु के पश्चात् सभी मंत्रियों ने तेतलीपुत्र से राज्यारूढ होने योग्य व्यक्ति बताने का । र आग्रह किया। अमात्य ने कनकरथ के पुत्र कनकध्वज को प्रकट किया और उसके जन्मादि की कथा सुनाई। 5कनकध्वज राजा बना तो उसकी माँ पद्मावती ने अमात्य तेतलीपुत्र का आभार प्रकट करने हेतु उन्हें यथोचित ८ 5 सम्मान देने के लिए अपने पुत्र से आग्रह किया। र तेतली पुत्र अमात्य सम्पूर्ण राज्य सम्मान सहित सुखी जीवन बिताने लगा। पोट्टिल देव ने कई बार प्रयत्न किया है ए पर तेतलीपुत्र को धर्म के मार्ग की प्रेरणा नहीं दे सका। अन्ततः उसने निश्चय किया कि दुःख की मार के बिना 5 तेतलीपुत्र की आँखें नहीं खुलेंगी। उसने राजा को अमात्य से विमुख कर दिया। तेतलीपुत्र को जब राजा से वांछित ड 5 आदर सत्कार नहीं मिला तो उसका मन दुःख से भर गया। उसने कई बार आत्महत्या का प्रयास किया पर विफल र हो गया। तब देव ने प्रकट हो उसे प्रतिबोध दिया। तेतलीपुत्र को जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ और उसने जाना र कि पूर्व भव में वह पुंडरीकिनी नगरी का महापद्म नामक राजा था। दीक्षा लेकर, चौदह पूर्यों का अध्ययन कर
वह देवलोक में जन्मा था और वहाँ से फिर तेतलीपुत्र के रूप में। उसे अपना पूर्व भव में अर्जित ज्ञान स्मरण हो ट 5 आया और उसने स्वयं ही दीक्षा ग्रहण कर ली। ध्यान-साधना कर केवलज्ञान प्राप्त कर लिया और अन्ततः मोक्ष में
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गया।
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA CI
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