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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र
पच्चप्पिणह।” जम्हा णं अम्हं एस दारए कणगरहस्स रज्जे जाए, तं होउ णं दारए नाणं कझ जाव अलं भोगसमत्थे जाए ।
सूत्र २१ : दूसरे दिन तेतलिपुत्र ने सेवकों को बुलाकर कहा - "हे देवानुप्रियो ! जल्दी से जाकर कारागार से बंदियों को मुक्त करो और दस दिन का पुत्र - जन्मोत्सव आयोजित करो। ये सभी कार्य सम्पन्न करके मुझे सूचित करो।" बालक ने राजा कनकरथ के राज्य में जन्म लिया अतः उसका नाम कनकध्वज रखा गया । वह क्रमशः विकसित होकर युवा हो गया ।
21. Next morning Tetaliputra called his servants and instructed, "Beloved of gods! Go to the prison and get the prisoners released and also make arrangements for a ten day long birth ceremony. Do all this and report back to me.” (details as in Ch. 1). As the boy was born under the reign of King Kanak-rath he was named Kanak-dhvaj. Years passed and he became a young man.
विमुख तेतलिपुत्र
सूत्र २२ : तए णं सा पोट्टिला अन्नया कयाई तेयलिपुत्तस्स अणिट्ठा जाया यावि होत्था, च्छइ य यलिपुत् पोट्टिलाए नामगोत्तमवि सवणयाए, किं पुण दरिसणं वा परिभोगं वा ?
तए णं तीसे पोट्टिलाए अन्नया कयाई पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि इमेयारूवे जाव समुज्जित्था - "एवं खलु अहं तेयलिपुत्तस्स पुव्विं इट्ठा आसि, इयाणिं अणिट्ठा जाया, नेच्छइ य तेयलिपुत्ते मम नामं जाव परिभोगं वा ।” ओहयमणसंकप्पा जाव झियाय ।
सूत्र २२ : कालान्तर में पोट्टिला तेतलिपुत्र को अप्रिय हो गई । तेतलिपुत्र उसके नाम से भी चिढ़ने लगा था तो देखने और छूने की तो बात ही क्या ?
एक बार मध्य रात्रि के समय पोट्टिला के मन में विचार उठा - " तेतलिपुत्र को मैं कभी प्रिय थी, पर आज अप्रिय हो गई हूँ। वे मेरा नाम ही सुनना नहीं चाहते तो दाम्पत्य जीवन के भोगोपभोग का प्रश्न ही नहीं उठता।" और संकल्प-विकल्प में उलझकर पोट्टिला चिन्तामग्न हो गई ।
APATHY OF TETALIPUTRA
22. Later some time, Pottila lost her charm in the eyes of Tetaliputra. He got irritated just by the mention of her name, to say nothing of seeing or touching her.
One day around midnight Pottila thought, "There was a time when Tetaliputra loved me, but now I have lost his favour. When he does not want to hear my name how can I expect a normal marital life and pleasures." These thoughts lead to a dejected and depressed state.
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SUTRA
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