Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan

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Page 199
________________ R ( १४२ ) ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र का 5 Gunasthan) and then after shedding the four vitiating karmas he acquired 5 the supreme Keval Jnana, and Keval Darshan (state of omniscience). र सूत्र ४९ : तए णं तेतलिपुरे नगरे अहासंनिहिएहिं देवेहिं देवीहि य देवदुंदुभीओ टा ह समाहयाओ, दसद्धवन्ने कुसुमे निव्वाए, दिव्वे गीय-गंधव्वनिनाए कए यावि होत्था। र सूत्र ४९ : इस अवसर पर तेतलिपुर के निकट रहे वाणव्यन्तर देव-देवियों ने देव दुंदुभियाँ टा बजाईं, पाँच रंग के फूलों की वर्षा की और दिव्य गंधर्व गीतों का निनाद किया। र 49. On this occasion the Vanavyantar gods (a class of demigods) sounded 15 divine drums, showered multi-coloured flowers and sang divine songs. र सूत्र ५0 : तए णं से कणगज्झए राया इमीसे कहाए लद्धढे समाणे एवं वयासी-“एवं खलु ड 15 तेयलिपुत्ते मए अवज्झाए मुंडे भवित्ता पव्वइए, तं गच्छामि णं तेयलिपुत्तं अणगारं वंदामिद 5 नमसामि, वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं विणएणं भुज्जो भुज्जो खामेमि।" एवं संपेहेइ, संपेहित्ता 5 र हाए चाउरंगिणीए सेणाए जेणेव पमयवणे उज्जाणे, जेणेव तेयलिपुत्ते अणगारे तेणेवट 15 उवागच्छइ, उवागच्छित्ता तेयलिपुत्तं अणगारं वंदइ नमसइ वंदित्ता नमंसित्ता एयमटुं च विणएणं र भुज्जो भुज्जो खामेइ, नच्चासन्ने जाव पज्जुवासइ। 15 सूत्र ५० : राजा कनकध्वज ने जब यह समाचार सुना तो उसके मन में विचार उठा, “अमात्य र तेतलिपुत्र ने मेरे द्वारा अपमानित किए जाने पर मुण्डित हो दीक्षा ली है। अतः मुझे जाकर 15 तेतलिपुत्र अनगार की यथाविधि वन्दना करनी चाहिये और अपनी भूल के लिए विनयपूर्वक टै 5 बार-बार क्षमा याचना करनी चाहिए।" यह विचार आने पर राजा ने स्नानादि से निवृत्त हो अपनी र सेना साथ ली और प्रमदवन उद्यान में तेतलिपुत्र अनगार के पास आया। अनगार तेतलिपुत्र को 5 इ यथाविधि वन्दना की और विनयपूर्वक क्षमा याचना की। फिर वह उनके सामने बैठ उपासना करने दी 15 लगा। र 50. When king Kanak-dhvaj came to know of this he thought, "Tetaliputra has become ascetic after being insulted by me. As such, I should go, pay my 15 homage, and seek his forgiveness with all humility again and again." He got < ready and with all his regalia came to ascetic Tetaliputra in the Pramadvan garden. After obeisance he humbly begged pardon and sat down to worship. सूत्र ५१ : तए णं से तेयलिपुत्ते अणगारे कणगज्झयस्स रन्नो तीसे य महइमहालियाए ट 5 परिसाए धम्म परिकहेइ। र तए णं कणगज्झए राया तेयलिपुत्तस्स केवलिस्स अंतिए धम्मं सोच्चा णिसम्म पंचाणुव्वइयं द र सत्तसिक्खावइयं सावगधम्म पडिवज्जइ पडिवज्जित्ता समणोवासए जाए जाव अहिगयजीवाजीवे। 51 5 तए णं तेयलिपुत्ते केवली बहूणि वासाणि केवलिपरियागं पाउणित्ता जाव सिद्धे। JNĀTĀ DHARMA KATHĂNGA SŪTRA 2 Finnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnny 15 (142) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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