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DDDDDDDDDDDDDDजत र ( १३६ )
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 तए णं से तेयलिपुत्ते जेणेव असोगवणिया तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता पासगं गीवाए डा र बंधइ, बंधित्ता रुक्खं दुरूहइ, दुरूहित्ता पास रुक्खे बंधइ, बंधित्ता अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि य से दी 15 रज्जू छिन्ना।
र तए णं से तेयलिपुत्ते महइमहालयसिलं गीवाए बंधइ, बंधित्ता अत्थाहमतारमपोरिसियंसिट 2 उदगंसि अप्पाणं मुयइ, तत्थ वि से थाहे जाए। 5 तए णं से तेयलिपुत्ते सुक्कंसि तणकूडसि अगणिकायं पक्खिवइ, पक्खिवित्ता अप्पाणं मुयइ, र तत्थ वि य से अगणिकाए विज्झाए। 5 सूत्र ४२ : तेतलिपुत्र अपने कमरे में आकर शय्या पर बैठा और विचार करने लगा-“मैं अपने दा र घर से निकल राजा के पास गया और उसने मेरा सत्कार नहीं किया। लौटते समय राह में भी ड र किसी ने आदर नहीं किया और घर में भी भीतर-बाहर किसी ने मेरा यथोचित आदर-सत्कार नहीं ट 5 किया। ऐसी स्थिति में अपना जीवन त्याग देना ही उचित है।" इस मनोदशा में उसने अपने मुँह में डा र तालपुट विष (तीव्र मारक विष) डाला किन्तु उसका कोई प्रभाव नहीं हुआ। 15 फिर उसने नीलकमल आदि (अ. ९, सू. १७) जैसी तलवार से अपने कंधे पर प्रहार किया ड र किन्तु उसकी धार कुंठित हो गई। 5 तत्पश्चात् तेतलिपुत्र अशोकवाटिका में गया और अपने गले में रस्सी से फंदा कसा। वृक्ष पर द र चढ़कर रस्सी के खुले छोर को डाल से बाँधा और स्वयं नीचे कूद पड़ा। पर उसे फाँसी नहीं लगी, ड 15 वह रस्सी टूट गई। र इसी प्रकार तेतलिपुत्र ने अपने गले में बड़ी-सी शिला बाँधी और गहरी और अथाह जलराशि S र में कूद पड़ा। पर वह डूबा नहीं, वह जलराशि छिछली हो गई। र अंत में उसने घास के सूखे ढेर में आग लगाई और उसमें कूद पड़ा। पर वह आग भी बुझड
15 गई।
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15 SUICIDE ATTEMPT
र 42. Tetaliputra went into his room, sat down on the bed and started SI ? brooding, "I left my house and went to the king and he did not give me due 5 regard. On the way back as well as at home I got the same apathetic a 5 treatment from everyone. Under these circumstances it is best for me to end 5 my life.” In this depressed state, he put the Taalput poison (an extremely 2 strong and deadly poison) in his mouth but nothing happened. 5 After this he took his blue (as in Ch. 9 para 17) sword and hit at the base 5 of his neck but its sharp edge became blunt. 5 (136)
JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA I
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