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___ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र ! 5 सारक्खमाणीए संगोवेमाणीए विहरित्तए' त्ति कटु एवं संपेहेइ, संपेहित्ता तेयलिपुत्तं अमच्चं 5 र सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी
र “एवं खलु देवाणुप्पिया ! कणगरहे राया रज्जे य जाव वियंगेह, तं जइ णं अहं । 15 देवाणुप्पिया ! दारगं पयायामि, तए णं तुमे कणगरहस्स रहस्सियं चेव अणुपुव्वेण सारक्खमाणे द
र संगोवेमाणे संवड्ढेहि, तए णं से दारए उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते तव य मम यह 15 भिक्खाभायणे भविस्सइ।' तए णं से तेयलिपुत्ते अमच्चे पउमावईए देवीए एयमद्वं पडिसुणेइ, टी
र पडिसुणित्ता पडिगए। 15 सूत्र १३ : रानी पद्मावती देवी को एक बार मध्य रात्रि के समय विचार आया-“राजा ट र कनकरथ अपनी राज्यासक्ति के कारण सभी पुत्रों को विकलांग कर देता है। अतः यदि मेरे अब डा ए कोई पुत्र उत्पन्न हो तो अच्छा यह होगा कि मैं उसका पालन-पोषण राजा से छुपाकर करूँ।" यह ही 15 सोचकर उसने अमात्य तेतलिपुत्र को बुलाया और कहार “हे देवानुप्रिय ! राजा कनकरथ अपनी राज्यासक्ति के कारण अपने पुत्रों को विकलांग बना ही 5 देता है, इस कारण यदि अब मैं किसी पुत्र को जन्म दूँ तो राजा से छुपाकर ही उसका संरक्षण, द र संगोपन और संवर्धन करना। इसके फलस्वरूप वह बालक जब युवा होगा तो हमारा पालन-पोषण ड र करेगा।" अमात्य ने रानी के इस प्रस्ताव को स्वीकार किया और लौट गया।
THE QUEEN'S PLAN
13. One day, around midnight queen Padmavati thought, “Because of his 13 covetous attitude King Kanak-rath disfigures all our sons. So, if I give birth 5 to a son in the future it would be good to bring him up covertly." Later she called minister Tetaliputra and said -
“Beloved of gods! Because of his covetous attitude King Kanak-rath disfigures all our sons. So, If I give birth to a son in future I would like you to
keep, protect, and bring him up covertly. So that when he becomes young he 15 will look after us.” The minister accepted the queen's proposal and returned टी
home. ___सूत्र १४ : तए णं पउमावई य देवी पोट्टिला य अमच्ची सममेव गब्भं गेहंति, सममेव गब्भं दी र परिवहंति, सममेव गब्भं परिवड्ढंति। तए णं सा पउमावई देवी नवण्हं मासाणं पडिपुण्णाणं र जाव पियदंसयणं सुरूवं दारगं पयाया।
र जं रयणिं च णं पउमावई देवी दारयं पयाया तं रयणिं च पोट्टिला वि अमच्ची नवण्हं 15 मासाणं पडिपुणाणं विणिहायमावन्नं दारियं पयाया। 15 (118)
JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA 2 'AAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAAA)
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