Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डा 5 सूत्र ५ : वहाँ से गुजरते समय उसने गेंद खेलती पोट्टिला को देखा और उसके रूप, यौवन द र आदि पर मोहित हो गया। उसने अपने सेवकों को पास बुलाकर पूछा-“देवानुप्रियो ! यह किसकी 51 र लड़की है और इसका नाम क्या है?' 5 सेवकों ने उत्तर दिया-"स्वामी ! यह मूषिकारदारक सुनार की पुत्री है और भद्रा की आत्मजा र है। इसका नाम पोट्टिला है और यह रूपादि में श्रेष्ठ है।" B PROPOSAL OF TETALIPUTRA
5. When he was passing from there he saw Pottila playing with her ball and was attracted by her beauty, youth, charm, and figure. He called his servants and asked, “Beloved of gods! Whose daughter is she? and what is
her name?" 5 The servants replied, "Sire! She is the daughter of goldsmith a » Mushikardarak and his wife Bhadra and her name is Pottila. She is cl
र extremely beautiful (etc. ).” 15 सूत्र ६ : तए णं से तेयलिपुत्ते आसवाहिणियाओ पडिनियत्ते समाणे अभिंतरट्ठाणिज्जे पुरिस टा
र सद्दावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-“गच्छह णं तुब्भे देवाणुप्पिया ! कलादस्स मूसियारदारगस्स धूयं र भद्दाए अत्तयं पोट्टिलं दारियं मम भारियत्ताए वरेह।" र तए णं ते अभिंतरद्वाणिज्जा पुरिसा तेयलिणा एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठा जावड 5 करयलपरिग्गहियं दसणहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलिं कट्ट ‘एवं सामी !' तह त्ति आणाएट 15 विणएणं वयणं पडिसुणेति, पडिसुणेत्ता तेयलियस्स अंतियाओ पडिणिक्खमंति, पडिणिक्खमित्ता डा
र जेणेव कलायस्स मूसियारदारयस्स गिहे तेणेव उवागया। तए णं कलाए मूसियारदारए ते पुरिसेट 15 एज्जमाणे पासइ, पासित्ता हट्टतुढे आसणाओ अब्भुढेइ, अब्भुद्वित्ता सत्तद्वपयाइं अणुगच्छइ, दी
र अणुगच्छित्ता आसणेणं उवनिमंतेइ, उवनिमंतित्ता आसत्थे वीसत्थे सुहासणवरगए एवं वयासी- र “संदिसंतु णं देवाणुप्पिया ! किमागमणपओयणं ?" हे सूत्र ६ : घुड़सवारी से वापस लौटने पर तेतलिपुत्र ने बाहर का काम करने वाले सेवकों से र बुलाकर कहा-“देवानुप्रियो ! तुम लोग जाकर मूषिकारदारक की पुत्री पोट्टिला से मेरी मँगनी तय 15 करो।"
र सेवकों ने प्रसन्नचित्त हो यथाविधि हाथ जोड़ विनयपूर्वक आज्ञा स्वीकार की और तेतलिपुत्र के । 5 घर से निकलकर मूषिकारदारक के घर पहुंचे। सुनार इन लोगों को आते देख प्रसन्न हुआ और द 15 उसने आसन से खड़ा हो आगे बढ़ उनका स्वागत कर उन्हें आसन ग्रहण करने को कहा। जब वेड
? आसनों पर बैठ विश्राम कर स्वस्थचित्त हुए तो मूषिकारदारक ने पूछा-“देवानुप्रियो ! कहिये, ड र आपके आने का क्या प्रयोजन है?''
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SÚTRA
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