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'तेरहवाँ अध्ययन : मंडूक - दर्दुरज्ञात
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north-eastern direction there was a Chaitya named Gunasheel Chaitya. In the city lived an ornament manufacturer named Nand Manikaar. He was illustrious and second to none in affluence.
सूत्र ८ : तेणं कालेणं तेणं समएणं अहं गोयमा समोसढे, परिसा निग्गया, सेणिए वि राया निग्गए । तए गंदे से णं मणियारसेट्ठी इमीसे कहाए लट्ठे समाणे व्हाए पायचारेणं जाव पज्जुवास, गंदे धम्मं सोच्चा समणोवासए जाए । तए णं अहं रायगिहाओ पडिणिक्खते बहिया वय - विहारं विहरामि ।
सूत्र ८ : हे गौतम ! काल के उस भाग में मैं गुणशील चैत्य में आया । वहाँ श्रेणिक राजा ह नागिरकों की परिषद् प्रवचन सुनने निकली। यह सूचना मिलने पर नन्द मणिकार स्नानादि से निवृत्त हो पैदल चलकर आया और उपासना करने लगा । उपदेश सुनकर नन्द श्रमणोपासक बन गया। फिर मैं राजगृह से प्रस्थान कर बाहरी जनपदों में विहार करने लगा।
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8. Gautam! During that period of time I came to the Gunasheel Chaitya. A delegation of citizens lead by king Shrenik came to attend my discourse. On getting this news Nand Manikaar also took his bath, got ready, walked to the religious assembly, and commenced my worship. After the discourse he became a Shramanopasak. Later I left Rajagriha and resumed my itinerant life.
सूत्र ९ : तए णं से णंदे मणियारसेट्ठी अन्नया कयाई असाहुदंसणेण य अपज्जुवासणाए य अणणुसासणाए य असुस्सूसणाए य सम्मत्तपज्जवेहिं परिहायमाणेहिं परिहायमाणेहिं मिच्छत्तपज्जवेहिं परिवढमाणेहिं परिवढमाणेहिं मिच्छत्तं विप्पडिवन्ने जाए यावि होत्था ।
सूत्र ९ : नन्द मणिकार को उसके बाद साधुओं के दर्शनों का अवसर प्राप्त नहीं हुआ। इससे उपासना और उपदेश का अभाव हो गया और धीरे-धीरे उपदेश सुनने की इच्छा भी समाप्त हो गई। फलस्वरूप उसके भीतर रहे सम्यक्त्व के गुण धीरे-धीरे क्षीण हो गये और मिथ्यात्व बढ़ने लगा । अन्ततः वह पूर्ण मिथ्यात्वी हो गया ।
9. After that Nand Manikaar did not get any opportunity to meet ascetics. This resulted in lack of worship as well as attending discourses. Slowly the desire for the same also dulled. Consequently righteousness started fading and falsehood started becoming prominent. At last he became completely fallacious.
नन्द की कामना
सूत्र १० : तए णं णंदे मणियारसेट्ठी अन्नया गिम्हकालसमयंसि जेट्ठामूलंसि मासंसि अट्टमभत्तं परिगेण्हइ, परिगेण्हित्ता पोसहसालाए जाव विहरइ ।
CHAPTER - 13 : THE FROG
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