Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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1 ग्यारहवाँ अध्ययन : दावद्रव : आमुख ।
शीर्षक-दावदवे-दावद्रव-समुद्री हवाओं से शीघ्र प्रभावित होने वाला वृक्ष विशेष। पर्यावरण में विभिन्न परिवर्तन वृक्षों पर विभिन्न प्रभाव डालते हैं। जैसे प्रत्येक व्यक्ति का नैसर्गिक विकास उसकी संरचना में अन्तर्निहित बल के अनुरूप होता है वैसे ही प्रत्येक वृक्ष का विकास भी होता है। और इसी बल और विकास पर निर्भर करते हैं बाहरी प्रभावों के फल। कुछ वृक्ष इन प्रभावों को सह पाते हैं कुछ नहीं। प्रकृति में उपलब्ध इस सटीक उदाहरण का उपयोग इस अध्ययन में साधक की सहनशीलता को समझाने के लिए किया गया है। साधक की आत्मोन्नति के मार्ग में सहनशीलता एक आवश्यक और आधारभूत पाथेय है।
कथासार-राजगृह में भगवान महावीर से गौतम स्वामी ने प्रश्न किया कि जीव आराधक तथा विराधक किस प्रकार बनता है ? भगवान ने समझाया कि समुद्र के किनारे दावद्रव नाम के हरे-भरे वृक्ष होते हैं। जब द्वीप की ओर से पवन चलती है तब अधिकतर वृक्ष खिल उठते हैं किन्तु कुछ ऐसे भी होते हैं जो कुम्हला जाते हैं। उसी प्रकार कुछ साधु-साध्वी अपने सम्प्रदाय (गण) वालों के कट्वचन तो सहन कर लेते हैं किन्तु अन्य सम्प्रदाय वालों के कटुवचन सहन नहीं कर सकते। ऐसे साधक देश-विराधक होते हैं। ___ अनेक वृक्ष ऐसे होते हैं जो समुद्र की ओर से चलने वाली वायु में कुम्हला जाते हैं पर कुछ ऐसे भी हैं जो खिल उठते हैं। उसी प्रकार से कुछ साधु अन्य सम्प्रदाय की कटूक्ति सहन कर लेते हैं पर अपने सम्प्रदाय (गण) की नहीं सह सकते। ऐसे साधक देश-आराधक होते हैं।
जब समुद्र तथा द्वीप दोनों ओर से पवन बहना बन्द हो जाता है तब सभी वृक्ष कुम्हला जाते हैं। उसी प्रकार किसी भी सम्प्रदाय या गण की कटूक्ति सहन नहीं कर पाने वाले साथ सर्वविराधक होते हैं।
जब द्वीप और समुद्र दोनों ओर से पवन बहती है तब सभी वृक्ष लहलहा उठते हैं। उसी प्रकार जो साधक किसी भी सम्प्रदाय की कटूक्ति सहन कर सकते हैं वे सर्व-आराधक होते हैं।
15CHAPTER-11 : THE DAVADRAV
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