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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र डी 5 सूत्र २२ : जितशत्रु राजा ने सुबुद्धि अमात्य का प्रवचन सुना व मन में धारण किया और दी र प्रसन्न व संतुष्ट होकर बोला-"देवानुप्रिय ! मैं निर्ग्रन्थ भाषित धर्म पर श्रद्धा करने लगा हूँ। तुम जोड र कहते हो वह यथार्थ ही है। अतः मैं तुमसे पाँच अणुव्रत तथा सात शिक्षा व्रतों को ग्रहण करने की । 5 अभिलाषा करता हूँ।"
सुबुद्धि-“हे देवानुप्रिय ! जिसमें सुख मिले वही करो, उसमें (विलम्ब) बाधा मत दो।"
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5 THE KING TURNS SHRAVAK 2 22. King Jitshatru attentively listened to the discourse of minister S B Subuddhi and absorbed its message. He became happy and contented and 5 said, “Beloved of gods! I now have faith on the word of the omniscient. What a 5 you say is, indeed, true. As such, now I desire to take the five minor and P seven disciplinary vows under your guidance.” .
___Subuddhi, “Beloved of gods! Do as you please without any delay." २ सूत्र २३ : तए णं से जियसत्तू राया सुबुद्धिस्स अमच्चस्स अंतिए पंचाणुव्वइयं जाव SI 15 दुवालसविहं सावयधम्म पडिवज्जइ। तए णं जियसत्तू समणोवासए जाए अभिगयजीवाजीवे
र पडिलाभेमाणे विहरइ। 15 सूत्र २३ : राजा जितशत्रु ने अमात्य सुबुद्धि से पाँच अणुव्रत सहित बारह प्रकार का श्रावक ट र धर्म अंगीकार किया। जितशत्रु श्रावक बन गया और जीव-अजीव आदि तत्त्वों का ज्ञाता हो गया। SI ए वह पौषध, श्रमण निर्ग्रन्थों को दानादि सुकृत करता हुआ जीवन बिताने लगा। 2 23. Under the guidance of Subuddhi, King Jitshatru accepted the said S Rtwelve vows of the Shravak Dharma. He became a Shramanopasak with the S 5 knowledge of the fundamentals including soul and matter. He started
5 observing the partial-ascetic vow, serving ascetics, and doing other टा 15 prescribed good deeds. र सूत्र २४ : तेणं कालेणं तेणं समएणं थेरा जेणेव चंपा णयरी जेणेव पुण्णभद्दचेइए तेणेवट र समोसढे, जियसत्तू राया सुबुद्धी य निग्गच्छइ। सुबुद्धी धम्म सोच्चा जं णवरं जियसत्तू डा IS आपुच्छामि जाव पव्वयामि। अहासुहं देवाणुप्पिया !
र सूत्र २४ : काल के उस भाग में चम्पानगरी के बाहर स्थित पूर्णभद्र चैत्य में एक स्थविर मुनि ड 15 पधारे। राजा जितशत्रु और अमात्य सुबुद्धि उनको वन्दना करने निकले। धर्मोपदेश सुनने के बाद ट | सुबुद्धि ने स्थविरों से कहा-“मैं राजा जितशत्रु से आज्ञा ले लूँ तब दीक्षा लूँगा।" स्थविर मुनि ने दा र उत्तर दिया-“जिसमें सुख मिले वही करो।"
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA ynnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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