Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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बारहवाँ अध्ययन : उदक ज्ञात
( ७५ )
तणं से जियसत्तू सुबुद्धिं एवं वयासी - 'केणं कारणेणं सुबुद्धी ! एस से फरिहोदए ?'
तणं सुबुद्धी जियसत्तुं एवं वयासी एवं खलु सामी ! तुम्हे तया मम एवमाइक्खमाणस्स एवं भासमाणस्स पण्णवेमाणस्स परूवेमाणस्स एयमहं नो सद्दहह, तए णं मम इमेयारूवे अज्झथिए चिंतिए पत्थिए मणोगए संकप्पे समुप्पज्जित्था - 'अहो णं जियसत्तू संते जाव भावे नो सद्दहइ, नो पत्तियइ, नो रोएइ, तं सेयं खलु ममं जियसुत्तस्स रण्णो संताणं जाव सब्भूयाण जिणपन्नत्ताणं भावाणं अभिगमणट्टयाए एयमहं उवाइणावेत्तए । एवं संपेहेमि, संपेहित्ता तं चेव जाव पाणियघरियं सद्दावेमि, सद्दावित्ता एवं वदामि - तुमं णं देवाणुप्पिया, उदगरयणं जियसत्तुस्स रन्नो भोयणवेलाए उवणेहि ।' तं एएणं कारणेणं सामी ! एस से फरिहोदए । '
सूत्र १९ : राजा ने जलगृह के कर्मचारी को बुलवाकर पूछा - "देवानुप्रिय ! तुमने यह श्रेष्ठ जल कहाँ से प्राप्त किया ?"
कर्मचारी ने उत्तर दिया--"स्वामी ! मैंने यह श्रेष्ठ जल सुबुद्धि अमात्य से प्राप्त किया है।”
राजा ने अमात्य सुबुद्धि को बुलाकर कहा - " अहो सुबुद्धि ! क्या बात है कि मैं तुम्हें अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोज्ञ और अमणाम ( मन के प्रतिकूल ) लगता हूँ जिससे कि तुम भोजन के समय प्रतिदिन यह उत्तम जल मुझे नहीं भेजते ? देवानुप्रिय तुमने यह श्रेष्ठ जल कहाँ से पाया ?"
सुबुद्धि ने उत्तर दिया- “स्वामी ! यह उसी खाई का पानी है । "
जितशत्रु ने आश्चर्य के साथ कहा - " हे सुबुद्धि ! यह उस खाई का पानी कैसे हो सकता है ?”
तब सुबुद्धि ने उत्तर दिया - " स्वामी ! मैंने उस समय आपसे पुद्गलों में होने वाले परिवर्तन परिणमन की बात कही थी पर आपको मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ था । तब मेरे मन में अध्यवसाय, चिन्तन, विचार और मनोगत संकल्प उठा कि राजा जितशत्रु सत्, यथार्थ आदि भावों पर श्रद्धा, प्रतीति (विश्वास) और रुचि ( उस विषय में दिलचस्पी ) नहीं रखते अतः अच्छा हो कि मैं उन्हें जिन प्ररूपित सत्, भूत भावों का रहस्य समझा कर पुद्गल में होने वाले परिवर्तन ) परिणमन को अंगीकार कराऊँ । तदनुसार मैंने खाई के पानी को स्वच्छ कर तैयार किया और आपके जलगृह के कर्मचारी को बुलाकर वह पानी भोजन के समय आपको देने को कहा । अतः यह वही खाई का पानी है । "
19. The king called the manager of the water-shed and asked, “Beloved of gods! Where did you get this pure water?”
“Sire! I got this water from minister Subuddhi.”
The king called minister Subuddhi and said, "Subuddhi! What is the matter? Am I so disgusting, loathsome, ugly and repulsive to you that you do not send such satisfying pure water to me everyday when I take my meals? Beloved of gods ! Where did you find this water?”
CHAPTER-12: THE WATER
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