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जम 7 (७२)
ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र (1 15 सूत्र १५ : एवं संपेहेइ, संपेहित्ता पच्चइएहिं पुरिसेहिं सद्धिं अंतरावणाओ नवए घडए पडए । र य पगेण्हइ, पगेण्हित्ता संझाकालसमयंसि पविरलमणुस्संसि निसंतपडिनिसंतंसि जेणेव फरिहोदए । 5 तेणेव उवागए, उवागच्छित्ता तं परिहोदगं गेण्हावेइ, गेण्हावित्ता-नवएसु घडएसु गालावेइ, र र गालावित्ता नवएसु घडएसु पक्खिवावेइ पक्खिवावित्ता लंछियमुहिए करावेइ, करावित्ता सत्तरत्तं । र परिवसावेइ, परिवसावित्ता दोच्चं पि नवएसु घडएसु गालावेइ, गालावित्ता नवएसु घडएसुट 15 पक्खिवावेइ, पक्खिवावित्ता सज्जक्खारं पक्खिवावेइ, पक्खिवावित्ता लंछियमुद्दिए करावेइ, डा
र करावित्ता सत्तरतं परिवसावेइ, परिवसावित्ता तच्चं पि नवएसु घडएसु जाव संवसावेइ। 15 सूत्र १५ : ऐसे विचार मन में आने पर सुबुद्धि अमात्य ने कुछ विश्वासपात्र जनों को साथ
लेकर उस खाई के रास्ते में पड़ती एक कुम्हार की दुकान से कुछ नये कोरे घड़े खरीदे और कपड़ा 5 खरीदा। इसके बाद संन्ध्या के समय, जब लोग अपने घरों में विश्राम करने लगे थे, और मार्ग पर 5 आवागमन कम हो गया था, वह उस खाई के पानी के निकट आया। खाई से पानी निकलवा कर ड उसे नये घड़ों में छनवाया। घड़ों में भरवा कर उन घड़ों के मुँह ढक कर मोहर लगवा दी। सात
रात-दिन उन्हें वैसे ही रहने दिया। फिर उस पानी को नये घड़ों में दुबारा छनवाया। घड़ों में भरकर 15 उनमें ताजा राख डलवाई और बन्द करके फिर मोहर लगवादी। सात रात-दिन तक वैसे ही रखने ड
र के बाद तीसरी बार फिर वही क्रिया करवा कर फिर सात रात-दिन छोड़ दिया। 15 15. As soon as this idea came to him, Subuddhi took along some reliable ! 15 servants and went to a potter's shop located on the way to that ditch and C
bought some fresh pitchers and a length of cloth. In the evening, when most of the people had returned home and the road was almost deserted, he came
at the edge of the ditch. He got some dirty water collected and filtered it into 5 the pitchers he had brought. He got the pitchers sealed and left them like 15 that for a week. After a week he got the seals broken and filtered the water
once again in new pitchers. Fresh ash was mixed with the water and the pitchers were sealed. After another week he got the same process repeated and left the pitchers like that for another week.
सूत्र १६ : एवं खलु एएणं उवाएणं अंतरा गलावेमाणे अंतरा पक्खिवावेमाणे, अंतरा य द र विपरिवसावेमाणे विपरिवसावेमाणे सत्तसत्तराइंदिया विपरिवसावेइ। 15 तए णं से फरिहोदए सत्तमसत्तयंसि परिणममाणंसि उदयरयणे जाव यावि होत्था-अच्छे पत्थे दी
र जच्चे तणुए फलिहवण्णाभे वण्णेणं उववेए, गंधेणं उववेए, रसेणं उववेए फासेणं उववेए, डी 5 आसायणिज्जे जाव सव्विंदियगायपल्हायणिज्जे। र सूत्र १६ : इस प्रणाली से बीच-बीच में छनवाकर, कोरे घड़ों में डलवाकर बार-बार सात र दिन-रात वह पानी रखा जाता रहा।
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JNĀTĀ DHARMA KATHANGA SŪTRA innnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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