Book Title: Agam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Author(s): Amarmuni, Shreechand Surana, Surendra Bothra, Purushottamsingh Sardar
Publisher: Padma Prakashan
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ज्ञाताधर्मकथांग सूत्र सत्ताण दुहत्ताणं सरणं चरणं जिणिंदपन्नत्तं। आणंदरूवनिव्वाणसाहणं तह य देसेइ ॥५॥ जह तेसिं तरियव्वो रुद्दसमुद्दो तहेव संसारो। जह तेसि सगिहगमणं निव्वाणगमो तहा एत्थ ॥६॥ जह भेलगपट्ठाओ भट्ठो देवीए मोहियमईओ। सावयसहस्सपउरमि सायरे पाविओ निहणं ॥७॥ तह अविरईए नडिओ चरणचुओ दुक्खसावयाइण्णे। निवडइ असारसंसारसायरे दारुणसरूवे ॥८॥ जह देवीए अक्खोहो पत्तो सट्ठाणजीवियसुहाई।
तह चरणट्ठिओ साहू अक्खोहो जाइ निव्वाणं॥९॥ र रत्नद्वीप की देवी के स्थान पर महापापमय अविरति समझनी चाहिए और लाभार्थी वणिकों के
स्थान पर सुख की कामना करने वाले जीव ॥१॥ र जैसे उन्होंने (माकन्दी पुत्रों ने) आघात-मण्डल (सूली पर) में एक पुरुष को देखा वैसे ही संसार 15 के दुःखों से भयभीत लोग धर्मकथा कहने वाले को देखते हैं॥२॥
र जैसे उसने उन्हें बताया कि देवी घोर दुःखों का कारण है और उससे निस्तार पाने का उपाय 15 शैलक यक्ष के अतिरिक्त नहीं है॥३॥
र वैसे ही अविरति के स्वभाव को समझने वाले उपदेशक भव्य जीवों को “इन्द्रियों के विषय 15 सभी दुःखों के कारण हैं," ऐसा कह कर जीवों को उनसे विरत करते हैं॥४॥
र और बताते हैं कि दुःखों से पीड़ित प्राणियों के लिए जिनेन्द्र द्वारा प्ररूपित चारित्र ही शरण है; 2 15 वही आनन्दरूप निर्वाण का साधन है॥५॥
र जैसे वणिकों को सागर पार करना था वैसे ही भव्य जीवों को विशाल संसार सागर पार करना 2 15 है। जैसे वणिकों को अपने घर पहुंचना था वैसे ही भव्य जीवों को मोक्ष प्राप्त करना है॥६॥
र जैसे देवी द्वारा मोहित मति (जिनरक्षित) शैलक की पीठ से गिर कर सहस्रों हिंस्र जन्तुओं से , 15 भरे सागर में मृत्यु को प्राप्त हुआ॥७॥
र वैसे ही अविरति से बाधा पाकर जो जीव चारित्र से भ्रष्ट हो जाता है वह दुःखरूपी हिंस्र 15 जन्तुओं से व्याप्त भयंकर और अपार संसार सागर में गिर पड़ता है॥८॥
र जैसे देवी के प्रलोभनों से निर्लिप्त रहने वाला (जिनपालित) अपने घर पहुँच कर जीवन के 15 सुखों को पा लेता है वैसे ही चारित्र में स्थिर और विषयों से निर्लिप्त साधु निर्वाण सुख को पा
लेता है॥९॥
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JNĀTĀ DHARMA KATHĀNGA SŪTRA Ç 卐Annnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnnn
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