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आत्मालोचन और जीवन को उन्नत बनाने वाले अनमोल-सन्देशों से इनकी रचनाएँ परिपूर्ण हैं। कवि दौलतराम
पद्मपुराण आदि गन्थों के प्रणेता पं० दौलतराम काशलीवाल से भिन्न तथा उनके परवर्ती कवि दौलतराम (पल्लीवाल) हिन्दी के मूर्धन्य कवि माने गये हैं। इन्होंने अपनी उत्कृष्ट रचनाओं से माँ भारती के भण्डार को अक्षय बनाया है।" "छहढाला” और “पद-संग्रह' ने तो अपनी सार्वजनीनता से कवि को अमरत्व प्रदान कर दिया है। भाषा, भाव और अनुभूति की दृष्टि से ये रचनाएँ हिन्दी की भक्तिपरक रचनाओं में अद्वितीय हैं। इनके माध्यम से कवि ने जैनदर्शन, सिद्धान्त और अध्यात्म की त्रिवेणी प्रवाहित की है। कवि का हिन्दी-भाषा पर पूर्ण अधिकार था। उनकी भाषा में लाक्षणिकता, चित्रमयता एवं शब्दलालित्य सर्वत्र विद्यमान है। उसके साथ ही पदों में संगीत की अवतारणा से उनके आन्तरिक और बाह्य सौन्दर्य को निखारने का सफल प्रयास किया गया है।
कवि की स्मरण-शक्ति अत्यन्त विलक्षण थी। ये छीट छापने का कार्य करते थे। अपना व्यवसाय करते हुए भी प्रतिदिन वे १०० श्लोक या गाथाएँ कण्ठस्थ कर लेते थे।
पं० दौलतराम जी के छहढाले के पूर्व यद्यपि महाकवि द्यानतराय कृत छहढाला (सन् १७२१) तथा बधुजन कृत छहढाला (सन् १८०२) भी प्रसिद्धि प्राप्त थे। किन्तु पं० दौलतमराम कृत छहढाला (सन् १८३४) के पदलालित्य-सरसता, गेयता एवं सर्वागीणता के कारण उसने सर्वाधिक लोकिप्रियता अर्जित की है।
पं० दौलतराम का जन्म वि० सं० १८५५ (सन् १७९८) में हाथरस में हुआ था। इनके पिता का नाम टोडरमल था, जो पल्लीवाल जाति के सिरमौर माने जाते थे। उनका गोत्र गंगीरीवाल था, किन्तु कहीं-कहीं उन्हें फतहपुरिया भी कहा गया है। उनका विवाह अलीगढ़ के सेठ चिन्तामणि बजाज की सुपुत्री से हुआ था। इनके दो पुत्र थे। अपने अन्तिम दिनों में कवि दौलतराम जी दिल्ली रहने लगे थे। इनकी मृत्यु तिथि का पता नहीं चलता। कवि मंगल
कवि मंगल ने मानव-जीवन की तीन अवस्थाओं का विर्णन कवि दौलतराम कृत छहढाला की तरह किया है।
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