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(१८७) इसका विचार विवेक पूर्वक शांत होकर कीजिए । तो सर्व आत्मिक ज्ञान में, सिद्धांत का रस पीजिए । किसका क्या उस तत्व की उपलब्धि में शिवभूत' है । निर्दोष नर का वचन रे ! वह स्वानुभूति प्रसूत है ॥४॥ तरो अरे तारो निजात्मा' शीघ्र अनुभव कीजिए । सर्वात्म में समदृष्टि द्यो, यह बच हृदय लिख लीजिये ॥ ५ ॥
(५०५) जगत में आयो न आयो, नाहक जन्म गमायो ॥ टेक ॥ मात उदर नव मास वस्यो तें, अंग सकुच दुख पायो । जठर' अग्नि की ताप सही नित, अधो शीश लटकायो । निकसि अति रुदन करो ॥ जगत. ॥१॥ बालपने में बोध विवर्जित', मात पितादि लड़ायो । तरुण भयो तरुणी रस राच्यो काम भोग ललचायो ॥ दुख संचै को धायो॥ जगत. ॥२॥ बिरध भयो बल पौरुष थाक्यो, बाढ्यो मोह सवायो २ ।। दृष्टि ३ घटी पलटी तन की छवि, डो डों बिलखायो कुटुम न काम में आयो ॥ जगत. ॥ ३ ॥ देव धरम, गुरू भेद न जान्यो, अमृत तज बिष खायो । कौड़ी एक कमाई नाही, गांठ'४ को मूल गमायो । चेत, चित लेख सुनायो ॥ जगत. ॥४॥
कवि द्यानतराय
(५०६)
राग-विहागरा जिया तें आतम५ हित नहिं कीना॥ टेक ॥ रामा ६ धन धन कीना, नरभव फल नहिं लीना ॥ जिया तै. ॥ जप तप करके लोक रिझाये, प्रभुता के रस मीना । अन्तर्गत परिणाम न साधे, एको गरज सरीना ॥ जिया तै. ॥१॥
१.कल्याणकारी २.अपने अनुभवों से उत्पन्न ३.अपनी आत्मा ४.व्यर्थ ५.पेट की आग ६.नीचे सिर करके लटका ७.रोना ८.रहित ९.धनजमा करने दौड़ा १०.वृद्ध हुआ ११.थक गया १२.सवा गुना १३.आंख की ज्योति कम हो गई १४.गांठ का मूल धन खो दिया १५.आत्मकल्याण १६.स्त्री १७.धन सम्पति १८.खुश किये १९.हृदय के।
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