Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 258
________________ (२०८) लक्ष्मी तो चंचल बड़ी, बिजली के उनहार' । याके फन्दे में बचोजी, अपनी 'करो सम्हार ॥ विवेकी मानुष भव पाया॥ अरे नर. ॥२॥ स्वच्छ सुगंध लगाय के, करके सब श्रृंगार । तिस तनमें तू रती' करै जी, सो शरीर है छार ॥ वृथा क्यों इसमें ललचाया ॥ अरे नर. ॥३॥ तन धन ममता छाड़के, राग द्वेष निरवार । शिव मारग पग धारिये धर्म जिनेश्वर सार ॥ सुगुरु ने ऐसा बतलाया॥ अरे नर. ॥४॥ (५५७) हे जियरा अन्तर के पट खोल ॥ टेक ॥ दुनिया क्या है एक तमाशा, चार दिना की झूठी आशा । पल में तोला पल में मासा, ज्ञान तराजू हाथ में लेकर। तौल सके तो तोल ॥ हे जियरा. ॥१॥ मतलब की है दुनियादारी, मतलब के हैं सब संसारी। तेरा जग में को हितकारी, तन मन का सब जोर लगाकर॥ नाम प्रभू का बोल ॥ हे जियरा. ॥२॥ अगर इस वक्त न चेतर सका तो, फेर न अवसर होगा ऐसा। इससे आतम हितकर मूरख, क्यों करता है देर ॥ हे जियरा ॥ ३ ॥ कवि भागचन्द (५५८) राग-दादरा चेतन निज भ्रमतें भ्रमत३ रहै ॥ टेक ॥ आप अभंग तथापि अंग के संग महादुख पुंज बहै। लौह पिंड संगति पावक ज्यों दुर्धर घन की चोट सहै ॥१॥ नाम कर्म के उदय प्राप्त नर नरकादिक परजाय८ धरै ।। तामे" मान अपनपौ विरथा जन्म जरा मृतु पाय डरै ॥ २ ॥ १. तरह २. प्रेम ३. राख ४. छोड़कर ५. मोक्षमार्ग ६. जिय ७. हृदय ८. तौलने का बॉट ९. तौलने बांट (आठ रत्ती) १०. स्वार्थ ११. भलाई करने वाला (गरह मासा) १२. सावधान १३. भटकता १४. अखण्ड १५. ढोता है १६. आग १७. कठोर १८. पर्याय १९. उसमें। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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