Book Title: Adhyatma Pad Parijat
Author(s): Kanchedilal Jain, Tarachand Jain
Publisher: Ganeshprasad Varni Digambar Jain Sansthan

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Page 282
________________ م ३५५ ३८१ ३४९ ७१ १२५ १३४ १२३ २३ ९५ له سه m م १५७ له ३२२ ४३६ ५८७ ५८९ ४९२ २५९ २२२ २२३ १८१ سه १८१ २७४ ९५ r २६. अरज करूँ तसलीम करूँ (बुध०) २७. अरज मोरी एक मान जी (महा०) २८. अरज म्यारी मानों जी (बुध०) २९. अरहन्त सुमर मन वावरे (द्यान०) ३०. अरिरज हंस हनन प्रभु अरहन्त (दौल०) ३१. अरे जिया जग धोखे की टाटी (दौल०) ३२. अरे मन आतम को पहचान (ज्योति) ३३. अरे मन करले आतम ध्यान (सुख०) ३४. अरे ! मन पापन सों नित डरिये (नयना० ) ३५. अरे ! हाँ चेतो रे भाई (भूध०) ३६. अरे हाँ रे तो सुधरी बहुत बिगारी (बुध०) ३७. अरे हो जियरा धर्म में चित्त (भाग०) ३८. अहो ! इन आपने अभाग उदै (भूध०) ३९. अहो ! जगत-गुरु एक सुनियो अरज (भूध०) ४०. अहो ! देखों केवलज्ञानी (बुध०) ४१. अहो ! मेरे तुमसौं बीनती (बुध०) ४२. अहो ! यह उपदेश मांहि (भाग०) ४३. आकुल रहित हो इमि निशि दिन (भाग०) ४४. आगम अभ्यास होहु सेवा (भूध०) ४५. आगे कहा करसी भैया आ जासी जब (बुध०) । ४६. आज गिरिराज निहारा, धन भाग हमारा (दौल०) ४७. आज तो बधाई हो नाभि द्वार (बुध०) ४८. आज मनरी बनी छै जिनराज (बुध०) ४९. आज मैं परम पदारथ पायौ (दौल०) ५०. आतम अनुभव आवै जब जिन (भाग०) ५१. आतम अनुभव करना रे भाई (द्यान०) u ५४३ ३८६ २ ३६० २७५ or १२७ ३ १२७ ९६ ३९४ १४० ० ० १२२ २६३ १४० ४८० ० ० ० ० ० ७ १३५ ३९३ ४०१ ४६ १४० १४२ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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