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इन पदों के लेखक वे कवि हैं, जिन्होंने पूर्ववर्ती प्राकृत, अपभ्रंश एवं संस्कृत के मूल जैन साहित्य का गहन अध्ययन कर उनका दीर्घकाल तक मनन एवं चिन्तन किया, तत्पश्चात्, युग की माँग के अनुसार अपने चिन्तन को विविध संगीतात्मक स्वर-लहरी में उनका चित्रण किया है । इन पदों की गेयता, शब्द गठन, आरोह-अवरोह तथा वह इतना सामान्य जनानुकूल, सुव्यवस्थित एवं माधुर्य रस समन्वित है कि उन्हें भौगोलिक सीमाएँ बाँध सकने में असमर्थ रहीं । राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश, दक्षिणभारत एवं आसाम बंगाल आदि में उन्हें समान स्वर लहरी तथा आरोह-अवरोह के साथ गाया-पढ़ा जाता है । वर्तमान में तो विदेशों में भी ये पद लोकप्रिय हो रहे हैं।
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